बलड़ी गांव के सार्वजनिक श्मशान घाट को कोरोना संक्रमित मृतकों के शवों के अंतिम संस्कार के लिए आरक्षित किए जाने के बाद इस गांव में जाने से रिश्तेदार हिचक रहे हैं। सामान्य तौर पर मौत के बाद शव यहीं लाए जाते हैं, लेकिन शमशान घाट में कोरोना संक्रमितों के जिलेभर से इतने शव आ जाते हैं कि उनके परिजनों के शव को स्थान ही नहीं मिलता।
जैसे तैसे स्थान मिले भी तो कोरोना संक्रमित शवों के बीच उन्हें बिना पीपीई किट पहनकर अंतिम संस्कार करना होता है। यहां संक्रमण के भय के कारण अर्थी को कंधे देने वाले भी बचने लगे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यही स्थिति रही तो कुछ दिनों बाद शादी ब्याह के लिए युवाओं के रिश्ते तक आने बंद हो सकते हैं। बलड़ी गांव निवासी परम दयाल ने बताया कि यह उनके गांव का सार्वजनिक शमशान है।
जिला प्रशासन ने इसे कोरोना शमशान घाट बना दिया। गांव में सामान्य तौर पर किसी परिजन की मृत्यु हो जाती है, उसके दाह संस्कार के लिए यहां स्थान ही नहीं मिल पाता है। लोगों को मालूम है कि यह शव कोरोना वाले शमशान में जाएगा तो लोग अर्थी को कंधा देने से भी कतराने लगे हैं। कोई मर जाए तो लोग उसके घर पर आने से भी बचने लगे हैं। उन्हें भय रहता है कि शमशान में आने से वह संक्रमित न हो जाएं।
गांव में नाते रिश्तेदारों का आना बेहद कम हो गया है
गांव के ही बलिंद्र और बलधीर ने बताया कि खास बात यह है कि अब गांव में नाते रिश्तेदारों का आना बेहद कम हो गया है। शादी ब्याह के रिश्ते लेकर भी लोग नहीं आ रहे हैं। इस गांव के लोग कोरोना शमशान में आते जाते रहते हैं, इसलिए यहां के ग्रामीणों के कोरोना संक्रमित होने की आशंका रहती है। इस समस्या से गांव के लोग काफी परेशान हैं।
उनकी मांग है कि प्रशासन को चाहिए कि उसी शमशान के निकट काफी जगह शमशान की है, वहां की सफाई कराकर वैकल्पिक व्यवस्था कराई जा सकती है। इधर, नगम निगम प्रशासन द्वारा एलपीजी गैस से दाह संस्कार के लिए मशीन लगाने की खबर ने इस गांव के लोगों को राहत दी है। क्योंकि जब मशीन को अर्जुन शिवपुरी शमशान में लगाया जा रहा है।
सोमवार इसकी स्थापना का कार्य तेज कर दिया गया है। उम्मीद की जा रही है कि आगामी दो तीन दिनों में ही एलपीजी गैस से दाह संस्कार का कार्य शुरू हो जाएगा। इसके बाद तो कोरोना संक्रमितों के शव भी बलड़ी की बजाय शिवपुरी ही जाएंगे।