भीम कहूं या प्रवीण कुमार मेरे लिए दोनों एक ही है। उम्र में वह मुझसे बडे़ थे। महाभारत में मेरे छोटे भाई का किरदार निभाया था। वैसा ही सम्मान मुझे देते थे। हमारा 34 साल का रिश्ता था। नकुल (समीर चित्रे) के बाद एक और भाई चला गया। अब तीन रह गए। यह भावुक शब्द महाभारत के युधिष्ठिर एवं सुपवा के कुलपति गजेंद्र चौहान केहैं।उन्होंने कहा कि वह दिन आज भी याद है। बात उन दिनों की है जब महाभारत बनाने के लिए पात्र चुने जा रहे थे। भीम का किरदार पुनीत इसर को दिया जा रहा था। उन्होंने दुर्योधन का किरदार करने की बात कहते हुए भीम के रोल से मना कर दिया। इसके बाद बलराम का किरदार निभाने वाले सागर सालुके को यह रोल देने की बात चल रही थी।इसी दौरान पंजाब का एक हट्टा कट्टा नौजवान चोपड़ा साहब से मिलने उनके ऑफिस में आया था। मैं और चोपड़ा साहब ऑफिस में बैठे थे। प्रवीण कुमार को देखते ही चोपड़ा सर एकदम बोले, यह तो मेरा भीम है.. न डायलॉग, न ऑडिशन। सीधे उन्हें भीम का रोल ऑफर कर दिया।
ठेठ पंजाबी व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी रहे हैं प्रवीण
कुलपति ने कहा कि प्रवीण ठेठ (टिपिकल) पंजाबी होने के चलते अक्सर पंजाबी में ही बातचीत करते थे। वह अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी रहे हैं। कॉमनवेल्थ व एडियाड में मेडल जीतने के अलावा ओलंपिक में भी देश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। खेलों में उनके बेहतर प्रदर्शन के चलते उन्हें अर्जुन अवार्ड भी दिया गया। दिल्ली के खेल गांव में एक सड़क का नाम उनके नाम पर रखा गया। इसे लेकर मैं और अर्जुन अक्सर मजाक करते थे कि सड़क का नाम तो मरने के बाद रखा जाता है।
