नसीबपुर के मैदान में उतारा गया था दो अंग्रेज कमांडरों को मौत के घाट

महेंद्रगढ़– नारनौल: मैं नसीबपुर का वो मैदान हूं, जिस पर हरियाणा के राज नायक माने जाने वाले राव तुलाराम ने अंग्रेजों के खिलाफ प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम लड़ा। इस लड़ाई में अंग्रेजों के दो कंमाडरों को मौत के घाट उतारा गया। मेरे सीने पर ही राव तुलाराम के पांच हजार से अधिक क्रांतिवीरों ने अपनी जान की बाजी लगा दी थी। मुझे याद है कि हमारे वीर अंग्रेजी सेना के छक्के छुड़ा रहे थे। लंबी लड़ाई लड़ी गई। हजारों अंग्रेज सैनिक मारे गए पर इस लड़ाई में हमारे भी पांच हजार शूरमाओं को भी शहीद होना पड़ा। इन शहीदों का वो वीर रक्त आज भी मेरा सीना गर्व से ऊंचा कर देता है, क्योंकि कायर अंग्रेजी सेना के अत्याचार से हमारे क्रांतिकारियों का जोश कभी ठंडा नहीं हुआ और शहीदों की वजह से 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ।

प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों की नींव हिलाने वाले हरियाणा के राज नायक राव तुलाराम का आज के ही दिन 23 सितंबर 1863 को महज 37 वर्ष की आयु में निधन हुआ था। इस महान स्वतंत्रता सेनानी की सेना ने नारनौल के नसीबपुर मैदान में अंग्रेजी सेना के कमांडर जेरार्ड और कप्तान वालेस को मौत के घाट उतार दिया था। इस लड़ाई में हमारे पांच हजार क्रांतिकारी शहीद हो गए थे। इन क्रांतिकारियों के बलिदान का गवाह नसीबपुर का यह मैदान है। शौर्यगाथा ——

राव तुलाराम सिंह का जन्म 9 दिसंबर 1825 को हुआ था। वह 1857 का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे। उन्हें हरियाणा राज्य में ” राज नायक” माना जाता है। विद्रोह काल में, हरियाणा के दक्षिण-पश्चिम इलाके से संपूर्ण ब्रिटिश हुकूमत को अस्थायी रूप से उखाड़ फेंकने तथा दिल्ली के ऐतिहासिक शहर में विद्रोही सैनिकों की, सैन्य बल, धन व युद्ध सामग्री से सहायता प्रदान करने का श्रेय राव तुलाराम को जाता है। 1857 की क्रांति में राव तुलाराम ने खुद को स्वतंत्र घोषित करते हुये राजा की उपाधि धारण कर ली थी। उन्होंने 16 नवंबर 1857 को नारनौल के नसीबपुर के मैदान में अंग्रेजों से युद्ध किया, जिसमें उनके पांच हजार से अधिक क्रांतिकारी सैनिक शहीद हो गए थे। उन्होंने दिल्ली के क्रांतिकारियों को भी सहयोग दिया। इस युद्ध के दौरान उनकी सेना ने ब्रिटिश सेना के कमांडर जेरार्ड और कप्तान वालेस सहित हजारों अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट उतर दिया । आगे की लड़ाई की रणनीति तय करने के लिए वह तात्या टोपे से मिलने गए। परंतु 1862 में तात्या टोपे के बंदी बना लिए जाने के कारण सैनिक सहायता मांगने ईरान व अफगानिस्तान चले गए, जहां अल्पायु में उनकी मृत्यु हो गयी। 1857 की क्रांति में भागीदारी के कारण ब्रिटिश हुकूमत ने 1859 में, राव तुलाराम की रियासत को जब्त कर लिया था। परंतु उनकी दोनों पत्नियों का संपत्ति पर अधिकार कायम रखा गया था। 1877 में उनकी उपाधि उनके पुत्र ”राव युधिष्ठिर सिंह” को अहिरवाल का मुखिया पदस्थ करके लौटा दी गयी।

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