दिल्ली में अकाली दल और भाजपा गठबंधन क्यों टूट गया, इसकी असली वजह सामने आ गई है, जो एक शर्त थी जिसे एक ने रखा और दूजे ने नकारा। अकाली दल बेशक नागरिकता संशोधन बिल का हवाला देकर भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर दिल्ली में चुनाव न लड़ने का दावा कर रहा हो, लेकिन अंदर की बात कुछ और ही है।
भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली में अकाली दल को इस शर्त पर चार सीट देने का ऑफर किया था कि वह तकड़ी नहीं, बल्कि कमल के चुनाव चिन्ह पर लड़ेंगे। तीन बार हुई मीटिंग में भी जब भाजपा ने अकाली दल की एक नहीं सुनी तो शिअद प्रधान सुखबीर बादल ने साफ कर दिया कि उनके उम्मीदवार तकड़ी चुनाव चिन्ह पर ही चुनाव लड़ेंगे, वरना पार्टी खत्म हो जाएगी।
भाजपा के न मानने पर अकाली दल व भाजपा का रिश्ता दिल्ली में टूट गया।
आठ सीटें मांग रहा था अकाली दल
अकाली दल के नेता और दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान मनजिंदर सिंह सिरसा ने राजौरी गार्डन उपचुनाव में 2017 में भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा था। सिरसा को कुल 78091 वोट में से 51.99 फीसदी वोट मिले। कांग्रेस उम्मीदवार को 33.23 फीसदी और आप प्रत्याशी को सिर्फ 13.11 फीसदी वोट मिले थे।
सिरसा की जीत के पीछे भाजपाई यह तर्क दे रहे थे कि वह कमल के फूल चिन्ह पर चुनाव लड़े, तभी उनकी जीत हुई, वरना वह हार सकते थे। इस बार अकाली दल दिल्ली में आठ सीट मांग रही थी, जिसमें रजौरी गार्डन, हरी नगर, कालका, मोती नगर, शाहदरा, तिलक नगर, सदर बाजार और कृष्णा नगर शामिल हैं।
अकाली दल उन सीटों पर ताल ठोक रहा था, जहां पंजाबी भाषी और सिख समुदाय के लोग अधिक रहते हैं। अकाली दल की तरफ से चुनाव लड़ने के लिए मनजिंदर सिंह सिरसा, अकाली दल बादल की दिल्ली इकाई के प्रधान हरमीत सिंह कालका और अवतार हित प्रमुख उम्मीदवार हैं।
इस तरह चला था बातचीत का दौर
भाजपा की तरफ से केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने राज्यसभा सदस्य बलविंदर सिंह भूंदड़ और नरेश गुजराल के साथ बातचीत की।
रविवार शाम को चार बजे मीटिंग रखी गई थी, जिसमें भाजपा की उच्च लीडरशिप ने साफ कर दिया कि वह चार सीट अकाली दल के उम्मीदवारों के लिए छोड़ देंगे, लेकिन चारों नेताओं को अधिकारिक रूप से भाजपा ज्वॉइन कराकर कमल के चुनाव चिन्ह पर ही मैदान में उतरना होगा। अकाली दल के दोनों राज्यसभा सदस्यों ने केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर को सोमवार शाम तक इस पर पुनर्विचार के लिए कहा।
सोमवार शाम को भी भाजपा लीडरशिप की तरफ से कोरा जवाब मिलने के बाद अकाली दल ने अपने आठों उम्मीदवारों को चुनाव न लड़ने के आदेश जारी कर दिए। पार्टी के उच्चपदस्थ सूत्रों के मुताबिक, सुखबीर ने तो साफ कर दिया कि पहले सिरसा जरूर भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़े थे, लेकिन अब हमारा निशान तकड़ी ही होगा, वर्ना हमारी पार्टी खत्म हो जाएगी। इसके बाद सोमवार रात शिअद-भाजपा गठबंधन टूट गया।