बठिंडा. सूबे में पराली न जलाने वाले किसानों की वेरिफिकेशन में फर्जीवाड़ा सामने आया है। सुप्रीम कोर्ट ने पराली न जलाने वाले किसानों को प्रति एकड़ 2500 रुपए मुआवजा देने के लिए 4 नवंबर निर्देश दिए थे। इसके बाद मुआवजा राशि हासिल करने के लिए पराली जलाने वाले किसान भी फर्जी आवेदन कर पोर्टल पर फेक एंट्री डाल गए।
जब विभाग को इसका पता चला तो उन्होंने तुरंत पोर्टल बंद कर दी और डाली गई एंट्री की जांच शुरू करवाई। विभाग ने आवेदनों की जांच के लिए 4 स्तरीय जांच प्रक्रिया शुरू की। इसमें सबसे पहले पंचायतों से वेरिफिकेशन करवानी जरूरी थी। लेकिन पंचायतों ने ही कथित तौर पर फर्जी फार्मों की वेरिफिकेशन कर डाली।
इसकी भनक लगने पर अब ग्रामीण विकास मंत्री के निर्देश पर डिप्टी डायरेक्टर पंचायत विभाग चंडीगढ़ ने सूबे के सभी डीडीपीओ को पत्र लिखकर इसकी जांच करने व जिला वाइज फर्जी वेरिफिकेशन करने वाले सरपंचों की सूचियां बनाकर 7 दिन में रिपोर्ट भेजने को कहा है ताकि उन पर आगे की कार्रवाई की जा सके।
सुप्रीम कोर्ट के पराली न जलाने वाले किसानों को 2500 रुपए प्रति एकड़ मुआवजे के निर्देश के बाद जैसे ही विभाग ने पोर्टल पर फार्म अपलोड करने को कहा तो सोसायटियों के ऑपरेटरों के जरिए यह काम शुरू किया गया।
फाजिल्का, जलालाबाद व बठिंडा के कई गांवों में किसानों ने फेक एंट्री डालकर फार्म अपलोड करवा दिए। फाजिल्का में तो कई ऐसे किसानों ने एंट्री डाली जिन्होंने धान की बिजाई ही नहीं की थी। बठिंडा के गांव जस्सी पौ वाली व किली निहाल सिंह वाला की सहकारी सभाओं में 200 के करीब गलत एंट्रियां सामने आईं।
आवेदन को इन 4 स्तरीय जांच प्रक्रिया से था गुजरना
1.सबसे पहले आवेदक किसान के फार्म को संबंधित पंचायत ने वेरिफाई करना था।
2.सोसायटी में अपलोड होने के बाद पंचायत सचिव वेरिफाई करेगा।
3. इसके बाद तहसीलदार ने इन आवेदनों को जांचने के बाद एसडीएम के पास भेजना था।
4.फिर एसडीएम की रिपोर्ट के बाद आवेदन को लाभ दिया जाना था।