राजनीतिक गलियारों में हरियाणा की भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार का खुशनुमा सफर

पंचकूला- हरियाणा की भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार और इन दोनों दलों की दोस्ती को पूरा एक साल बीत गया। पिछले साल भाजपा जब राज्य में दूसरी बार सरकार बनाने के लिए 40 सीटों पर सिमट गई तो वहां काफी कुछ बदल जाने के कयास लगने लगे। कांग्रेस भी सरकार बनाने के उपक्रम में प्रयासरत दिख रही थी। उसे उम्मीद थी कि 31 विधायकों वाले पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का जजपा के साथ सरकार बनाने का सपना पूरा हो सकता है, लेकिन वह पूरा नहीं हो सका। फिर शुरू हुआ मुख्यमंत्री मनोहर लाल और दुष्यंत चौटाला के बीच नई लंबी राजनीतिक पारी खेलने का दौर।

सरकार चलाने और सरकार में बने रहने की मजबूरी : 

बहरहाल राजनीतिक खटपट का दौर पूरे साल चलता रहा, लेकिन इसे दोनों दलों की प्रगाढ़ दोस्ती मानें या फिर सरकार चलाने और सरकार में बने रहने की मजबूरी, दोनों दल एक दूसरे का बखूबी साथ निभा रहे हैं। कभी भाजपा सरकार में जजपा की ढाल बनती दिखाई दी तो कभी जजपा ने भाजपा की हां में हां मिलाते हुए उसकी रीति-नीति में पूरी आस्था जताई। जेबीटी शिक्षक भर्ती मामले में जेल में बंद दुष्यंत के पिता अजय चौटाला को भी लंबे अरसे बाद सत्ता सुख का अहसास हुआ, लेकिन दुष्यंत के दादा ओमप्रकाश चौटाला और चाचा अभय चौटाला के दिल में यह कसक जरूर बनी रही कि यदि परिवार की लड़ाई बाहर नहीं आती तो राज इस पूरे परिवार का होता।

 

जजपा के दस विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई : 

भाजपा में भी एक तबका ऐसा रहा, जिसने दुष्यंत चौटाला से राजनीतिक समर्थन हासिल करने का विरोध किया, लेकिन जिस मुख्यमंत्री मनोहर लाल को उनके पहले कार्यकाल में राजनीतिक तौर पर नया खिलाड़ी माना जाता था, वह एक माहिर खिलाड़ी निकले। उन्होंने अपने दोनों हाथों में लड्डू रखे। जजपा के दस विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई और किसी भी विपरीत स्थिति से निपटने के लिए निर्दलीय विधायकों को अपने कब्जे में रखते हुए ताऊ देवीलाल के छोटे बेटे निर्दलीय विधायक रणजीत चौटाला को मंत्री बना दिया। बाकी बचे पांच विधायकों को बोर्ड एवं निगमों का चेयरमैन बना दिया गया, जबकि एक विधायक बलराज कुंडू बागी हो गए। उनका विरोध आज भी जारी है, लेकिन भाजपा उन्हें मना लेने का दम भर रही है।

भाजपा की मजबूरी जजपा का समर्थन हासिल कर सरकार चलाने की

यह तो रही भाजपा व जजपा की दोस्ती की बात, लेकिन बड़ा सवाल यह पैदा हो रहा कि आखिर अगले चार वर्षो में इस मित्रता का क्या हश्र होने वाला है? इसका जवाब भाजपा व जजपा दोनों के पास इस रूप में है कि कोई भी अपनी तरफ से इस गठबंधन को तोड़ने की पहल नहीं करेगा। मतलब साफ है कि भाजपा की मजबूरी जजपा का समर्थन हासिल कर सरकार चलाने की है और जजपा की मजबूरी भाजपा का समर्थन करते हुए सरकार में बने रहने की है। कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा और इनेलो के अभय सिंह चौटाला यदि कोई गेम करने में कामयाब हो गए तो अलग बात है, अन्यथा दोनों दलों ने अगले चार साल तो क्या भविष्य में भी भरोसे और विश्वास की राजनीति को आगे बढ़ाने के संकेत कई बार दिए हैं।

कोरोना और विपक्ष से जूझती रही गठबंधन सरकार : मनोहर लाल सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला साल राजनीतिक, सामाजिक और आíथक परेशानियों से भरा रहा। अल्पमत में होने के बावजूद सत्तारूढ़ भाजपा के लिए जननायक जनता पार्टी का मिला साथ जहां हौसला बढ़ाने वाला साबित हुआ, वहीं एक साल के कार्यकाल में सरकार के सात महीने कोरोना का मुकाबला करने में बीत गए। बाकी बचे पांच माह में उपलब्धि के तौर पर कोई बड़ा काम तो नहीं हो पाया, लेकिन सरकार ने पटरी से उतरी प्रदेश की अर्थव्यवस्था को इसी साल काबू करने में बड़ी सफलता हासिल की है। सरकार ने अफसरशाही में कई बड़े प्रयोग भी किए। मसलन परिवहन विभाग के भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने के लिए आइपीएस अधिकारी शत्रुजीत कपूर को परिवहन विभाग का प्रिंसिपल सेक्रेटरी बना दिया। एचपीएस अधिकारियों को परिवहन विभाग में आरटीए बनाकर सरकार ने लोहे को लोहे से काटने की रणनीति पर आगे बढ़ने की बड़ी पहल की है।

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