भारत सहित दुनियाभर की अर्थव्यवस्था इन दिनों सुस्ती के दौर से गुजर रही है। इसका असर रोजगार के आंकड़ों पर भी पड़ा है। संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक इस समय विश्व में 47 करोड़ लोग ऐसे हैं जो या तो बेरोजगार हैं या उनके पास पर्याप्त काम नहीं है। यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी संस्था इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (आईएलओ) ने जारी की। रिपोर्ट में कहा गया है कि वैसे तो बेरोजगारी की दर पिछले एक दशक से स्थिर है, लेकिन बेरोजगारों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। मौजूदा समय में वैश्विक बेरोजगारी दर 5.4% है। इस आंकड़े में बहुत ज्यादा बदलाव आने की उम्मीद नहीं है लेकिन सुस्त होती अर्थव्यवस्थाओं के कारण बिना जॉब वाली आबादी बढ़ रही है। रिपोर्ट के अनुसार साल 2020 में रजिस्टर्ड बेरोजगारों की संख्या 25 लाख बढ़कर 19.05 करोड़ हो जाएगी। 2019 में यह आंकड़ा 18.80 करोड़ था।
काम के जरिए अच्छी जिंदगी पाना हो रहा मुश्किल: आइएलओ प्रमुख
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि विश्व में करीब 28.5 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके पास पर्याप्त रोजगार नहीं है। यानी ये लोग जितना काम चाहते हैं उतना नहीं मिलता। इनमें ऐसे लोग भी शामिल हैं जो रोजगार की तलाश बंद कर चुके होते हैं। कुल मिलाकर 47.3 करोड़ लोग ऐसे हैं जो पूरी तरह बेरोजगार हैं या उनके पास काम की कमी है। यह आंकड़ा दुनियाभर में मौजूद वर्कफोर्स का 13% है।
काम के मौकों में भेदभाव के कारण बढ़ रहा प्रदर्शन
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के प्रमुख गाय राइडर ने कहा कि दुनिया में करोड़ों लोग अलग-अलग तरह का काम करते हैं। लेकिन, मौजूद परिस्थिति में काम के जरिए अपनी जिंदगी का स्तर बेहतर बनाना इनके लिए लगातार मुश्किल हो रहा है। उन्होंने कहा कि काम से जुड़े भेदभाव और कुछ तबकों को मौके न देने की सोच परिस्थिति को और गंभीर कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि दुनियाभर में विरोध प्रदर्शनों में आई तेजी के पीछे अच्छे जॉब का अभाव भी है।
60% वर्कफोर्स असंगठित क्षेत्र में सेवा दे रहा है
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस समय दुनिया का 60% वर्कफोर्स असंगठित क्षेत्र में काम कर रहा है। उन्हें न तो उचित वेतन मिलता और न ही सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजनाएं उन तक पहुंच पाती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इस समय दुनिया के 63 करोड़ कामगार लोग गरीबी के माहौल में जीवनयापन कर रहे हैं। इनकी रोज की कमाई 3.2 डॉलर (करीब 228 रुपए) से कम है। आय में असमानता के पीछे लोकेशन, जेंडर और उम्र बड़े फैक्टर बताए गए हैं।
सैलरी और भत्तों पर होने वाला खर्च 14 साल में 3% घटा, युवा भी अच्छी स्थिति में नहीं
आईएलओ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर के देशों में वर्कफोर्स की सैलरी, मजदूरी या भत्तों पर पर होने वाला खर्च घटा है। 2004 से 2017 आते-आते इसमें 3% की कमी आई है। 2004 में यह खर्च 54% था। 2017 में यह 51% रह गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में 15 से 24 साल की उम्र के 26.7 करोड़ युवाओं की स्थिति काफी कमजोर है। इन्हें न तो अच्छी शिक्षा मिल रही है और न ही ट्रेनिंग के मौके। लिहाजा इनके पास किसी किस्म का रोजगार भी नहीं है।