इस अधिनियम की महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत के अल्पसंख्यकों का इस कानून से कोई लेना-देना नहीं है। इसका उद्देश्य केवल उन लोगों को सम्मानजनक जीवन देना है, जो दशकों से पीड़ित रहे हैं। उन लोगों के लिए हिंदुस्तान के दरवाजे कभी बंद नहीं हुए जो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि अल्पसंख्यकों के प्रति भेदभाव की इसी मानसिकता का परिणाम है कि 1947 में पाकिस्तान में जहां अल्पसंख्यकों की संख्या 23 प्रतिशत थी, वह 2011 में मात्र 3.7 प्रतिशत ही रह गई। पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में 1947 में अल्पसंख्यकों की आबादी 22 प्रतिशत थी, जो 2011 में 7.8 प्रतिशत हो गई। वहां अल्पसंख्यकों को या तो मार दिया गया, या उनका जबरन धर्मांतरण कराया गया या वे शरणार्थी बनकर भारत में आए।
ऐसे पीड़ित लोग भारत से ही अपने आश्रय की आस लेकर यहां आते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनको भारत का नागरिक बनने का अवसर प्रदान किया है। भारत की नागरिकता पाने के लिए पहले उनका 11 साल भारत में रहना अनिवार्य था। अब यह अवधि घटाकर पांच साल की गई है। यह कानून पड़ोसी देशों से आए ऐसे लोगों को सम्मान के साथ जीने का अवसर प्रदान करेगा।