झारखंड की सियासत में एक बार फिर नए दौर का आगाज हुआ है। जनता ने हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले महागठबंधन को सत्ता सौंपी है। आदिवासी नायक बिरसा मुंडा के अनुयायी और राजनीतिक परिवार से आने वाले हेमंगत दूसरी बार मुख्यमंत्री बनेंगे। इससे पहले उन्होंने 2013 में झारखंड के सबसे कम उम्र के सीएम के रूप में सत्ता संभाली थी।
हेमंत के सियासी सफर को देखें तो शुरुआती असफलता के बाद उन्होंने कुछ ही सालों में बुलंदियां छूने में कामयाबी हासिल की है। 12वीं तक पढ़े हेमंत मेकेनिकल इंजीनियर बनना चाहते थे। उन्होंने कोर्स में प्रवेश भी लिया लेकिन पूरा नहीं कर पाए। इसके बाद उन्होंने सियासी दुनिया का रुख किया। 2003 में छात्र मोर्चा से राजनीति में कदम रखा था।
हालांकि, शुरुआती सफर अच्छा नहीं रहा और 2005 में अपने पहले विधानसभा चुनाव में ही हार का सामना करना पड़ा। इसी बीच, उनके बड़े भाई दुर्गा सोरेन का देहांत हो गया, जो शिबू सोरेन के उत्तराधिकारी माने जाते थे। इस घटना ने हेमंत का जीवन बदल दिया और राजनीतिक विरासत की जिम्मेदारी संभाली।
जनता के मुद्दों पर फोकस
नेता प्रतिपक्ष रहते हेमंत ने राज्य के मुद्दों पर फोकस किया। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने आदिवासियों की आवाज बुलंद की। रघुवर सरकार पर खुदरा शराब बिक्री को लेकर हावी रहे। शिक्षा, स्वास्थ्य पर खासा जोर दिया। सरकारी स्कूलों को बंद करने और 70000 से ज्यादा अस्थायी शिक्षकों के नियमन का पुरजोर समर्थन किया।
कम उम्र में हासिल हुआ अनुभव
हेमंत जून 2009 में राज्यसभा पहुंचे। दिसंबर 2009 में विधानसभा चुनाव में दुमका सीट से ताल ठोकी और जीत दर्ज की। भाजपा की सरकार को समर्थन देने के बदले हेमंत 2010 में डिप्टी सीएम। इसके बाद जुलाई 2013 में 38 साल की उम्र में प्रदेश के पांचवें और सबसे युवा सीएम बने। इस दौरान करीब डेढ़ साल उन्होंने झारखंड की कमान संभाली।
महागठबंधन कर दिलाई जीत
राज्य में पूरे पांच साल चले भाजपा के शासन के मद्देनजर जेएमएम की वापसी मुश्किल दिख रही थी लेकिन हेमंत ने कांग्रेस, जेवीएम-पी और आरजेडी के साथ मिलकर महागठबंधन गढ़ने में अहम भूमिका निभाई। महागठबंधन को न सिर्फ सत्ता तक पहुंचने में कामयाबी मिली बल्कि लोकसभा चुनाव के बाद यह उसकी पहली जीत है।