ग्राउंड रिपोर्ट / लखनऊ में स्थानीय नेताओं की अगुआई में गली-मोहल्लों में छिपी भीड़ ने हंगामा किया, 3 घंटे बाद इलाके में कर्फ्यू जैसे हालात |

लखनऊ. ‘‘मेरा बेटा तो सौदा लेने गया था, उसे क्यों गोली मार दी। ये पुलिसवाले सबको मार देंगे। आखिर मेरे बेटे ने किसी का क्या बिगाड़ा था।’’ ये शब्द मृतक वकील की मां के हैं। वह बताती हैं कि पास की दुकानें बंद थीं तो वह हुसैनाबाद सामान लेने के लिए गया था। हालात देखते हुए वह अपना रिक्शा भी छोड़ गया था, लेकिन 3 घंटे बाद उसकी मौत की खबर आई। वकील की पत्नी रुबीना के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे।चचेरे भाई शकील ने बताया कि सालभर पहले ही शादी हुई थी। जिंदगी अच्छी चल रही थी। अब सब खत्म सा हो गया। परिवार को अभी वकील का शव नहीं मिल पाया है।

कैसे भड़की हिंसा

गुरुवार को लखनऊ के परिवर्तन चौक से लेकर हुसैनाबाद तक का 5 किमी का इलाका 3 घंटे से ज्यादा हंगामा करने वालाें की जकड़ में रहा। परिवर्तन चौक पर हिंसा के साथ दो पुलिस चौकियां भी फूंकी गईं और जगह-जगह पथराव हुए। सतखंडा चौकी के बगल मोहल्ले में रहने वाले तौकीर अहमद खान कहते हैं कि पिछले तीन दिनों से यहां के लोकल नेता सोशल मीडिया के जरिए लोगों से परिवर्तन चौक पहुंचने के लिए कह रहे थे। गुरुवार दोपहर 12 बजे सतखंडा चौकी के पीछे अशरफ होटल पर युवाओं की भीड़ भी इकट्ठी हुई, लेकिन पुलिस ने उन्हें आगे नहीं जाने दिया। 2 से 2.30 बजे के बीच गुस्साए लोगों ने पुलिस चौकी को आग लगा दी। हम लोगों को तब पता चला, जब हंगामा करने वाले मोहल्ले में पुलिस पर पथराव करते हुए भागे। सुबह से ही भारी फोर्स को देखते हुए लोगों ने अपनी दुकानें पहले ही बंद कर रखी थीं, लेकिन कुछ लोगों की वजह से माहौल खराब हो गया।

‘लोग राशन-पानी इकट्ठा कर रहे’ 

सिराज बताते हैं कि हंगामा करने वाले छोटे-छोटे गुटों में थे। उन्हें इस बात का गुस्सा था कि पुलिस उन्हें आगे नहीं जाने दे रही। भीड़ में ज्यादातर युवा ही दिखाई दिए। तकरीबन 5 बजे के बाद जब हालात सामान्य हुए तो कुछ दुकाने खुलीं। लोग हालात देख कर डरे हुए हैं कि कर्फ्यू न लगा दिया जाए। लोग घरों में सामान इकट्ठा कर रहे हैं। सब्जी और राशन की दुकानों पर भीड़ है।

‘ऐसी हिंसा पहली बार देखी’ 

परिवर्तन चौक पर स्थित बेगम हजरत महल पार्क में इकट्ठी हुई भीड़ जब उग्र हुई तो फुटपाथ पर बने रैनबसेरे को जलाने की कोशिश की गई। रैन बसेरे का रखरखाव करने वाले रोहित सक्सेना कहते हैं कि आग लगी देख मैंने उसे बुझाया, जिससे मेरा हाथ भी थोड़ा जल गया। सब कुछ मेरी आंखों के सामने हुआ। भीड़ अचानक से उग्र हो गई। वे पुलिस पर पथराव करने लगे। लोग हजरतगंज की तरफ जाना चाहती थे, लेकिन पुलिस उन्हें जबर्दस्ती रोक रही थी। उसमें से कुछ लोगों ने पथराव कर दिया, जिसके बाद हालात बिगड़ गए। उपद्रवियों ने लोहे की बड़ी-बड़ी जालियां, गेट तोड़ दिए और बाहर आकर तांडव मचाने लगे। मेरे सामने कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया। इस रैन बसेरे में रोजाना 25 से 30 लोग रहते हैं, लेकिन शाम 7 बजे तक कोई नहीं आया। सबको डर लग रहा है कि फिर कहीं कुछ न हो जाए। 10 साल से यहां हूं, लेकिन पहली बार ऐसी हिंसा देखी है।

‘प्रोटेस्ट में हिस्सा लेने गई थी, जान पर बन आई’ 

एक युवती ने बताया कि हम अपने साथियों के साथ प्रोटेस्ट में हिस्सा लेने आए थे। सभी शांति से बैठे थे कि अचानक कुछ लोग नारे लगाने लगे। हमने उन्हें शांत करने की कोशिश की, तो वह हम पर ही चिल्लाने लगे। अचानक से उन लोगों ने पुलिस पर पथराव कर दिया, जिसके बाद हालत बेकाबू हो गए। मैं और मेरी सहेलियां कैसरबाग स्थित रोड पर एक दरगाह में घुस गए। वहां दरवाजा बंद कर लिया, लेकिन कुछ लोग दरवाजा तोड़ने पर आमादा थे। वे लगातार गलियां दे रहे थे। एक लड़के ने हम लोगों को बचने की कोशिश की, उसे भी बहुत पीटा। दरगाह में रहने वाले बुजुर्ग को भी नहीं बख्शा। हमने किसी तरह सनतकदा पहुंचकर जान बचाई। मैं ढाई घंटे बस दुआ करती रही।

परिवर्तन चौक से हुसैनाबाद तक पुलिस ही पुलिस 

हिंसा थमने के बाद परिवर्तन चौक से लेकर हुसैनाबाद तक सड़क पर पुलिस ही पुलिस दिखाई दे रही है। परिवर्तन चौक पर पुलिस की 30 से ज्यादा गाड़ियां खड़ी हुई है। आलाधिकारी मौके पर थे। 250 से ज्यादा पुलिसकर्मी चौराहे पर मौजूद हैं। बैरिकेटिंग कर दी गई है। पुराने लखनऊ में शाम को रोशन रहने वाला घंटाघर का इलाका सूना रहा। सड़क पर केवल आने-जाने वाले ही रहे। हर तरफ पुलिस ही पुलिस है। दुकानें बंद हैं और सन्नाटा छाया है।

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