अयोध्या मामले की 27वीं बरसी कलः शौर्य दिवस नहीं, मठ-मंदिरों में जलेंगे दीप|

अयोध्या के विवादित ढांचे को ढहे 27 साल होने को आ गए। इन 27 वर्षों में प्रतिवर्ष 6 दिसंबर को देश-दुनिया की मीडिया को अपने यहां आने पर मजबूर करने वाली अयोध्या में इस बार बहुत कुछ बदला दिखेगा।

न सर्वोच्च न्यायालय से जल्द  फैसला देने की अपीलें सुनाई देंगी और न ये आवाजें उठेंगी कि हम न्यायालय के अलावा किसी की नहीं मानेंगे। कानून बनाकर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने की बात भी नहीं सुनाई देगी। कारण, सर्वोच्च न्यायालय का बहुप्रतीक्षित फैसला आ चुका है और विवाद का समाधान हो चुका है।

बदली परिस्थिति में विहिप ने भी इस 6 दिसंबर को शौर्य व विजय दिवस मनाने की परंपरा को बदलते हुए इसे अलग अंदाज में मनाकर सद्भाव का संदेश देने की तैयारी की है। तय किया है कि इस बार 6 दिसंबर को शक्ति प्रदर्शन के बजाय मठ-मंदिरों व घरों में दीप एवं भजन-कीर्तन कर भगवान से मंदिर निर्माण का संकल्प जल्द पूरा करने की प्रार्थना की जाएगी।

दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर अमल तीन महीने बाद शुरू होना है। इस बीच केंद्र सरकार को ट्रस्ट भी गठित करने के साथ मुस्लिम पक्ष को मस्जिद निर्माण के लिए भूमि चयन करके देना है। मुस्लिम पक्ष की तरफ से दाखिल की जाने वाली पुनर्विचार याचिका पर भी निर्णय होना है।

यह भी है वजह

संघ परिवार और संत कोई भी ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं होने देना चाहते जिससे दूसरे पक्ष को इस मामले में नया विवाद खड़ा करने का मौका मिले। उनकी कोशिश है कि हिंदू पक्ष की तरफ से कोई सड़क पर आकर खुशी और इसे  हिंदुओं की जीत बताने जैसे कार्यक्रम न करने पाए। संघ व विहिप के सूत्र कहते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद इसे हिंदुओं की जीत बताने या जश्न मनाने से समाज में तनाव फैल सकता है।

इससे कोई विवाद खड़ा हुआ तो सर्वोच्च न्यायालय भी उसका संज्ञान ले सकता है। उस परिस्थिति में प्रदेश और देश में भाजपा की सरकार के सामने विपरीत स्थितियां खड़ी हो जाएंगी। इससे राष्ट्रवाद के एजेंडे पर अन्य कामों को जमीन पर उतारने में अड़चन आ सकती और मंदिर निर्माण के काम में भी अनावश्यक बाधा खड़ी हो सकती है। संभवत: यही वजह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के तुरंत बाद सार्वजनिक रूप से इसे जीत या हार का प्रश्न न बनाने का आह्वान किया है।

शौर्य व विजय दिवस का औचित्य नहीं

श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास भी दो दिन पहले कह चुके हैं कि सर्वोच्च न्यायालय ने 9 नवंबर को सत्य पर मुहर लगाकर ‘ठाकुर जी’ को कपड़े के अस्थायी मंदिर से मुक्त कर भव्य मंदिर में विराजमान करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। इसलिए अब ‘शौर्य व कलंक’ जैसे कार्यक्रमों का औचित्य नहीं।

विहिप के मीडिया प्रभारी शरद शर्मा भी कहते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय के इतने बड़े फैसले को विहिप दो-चार घंटे में सीमित नहीं करना चाहती। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 6 दिसंबर सहित अन्य सभी तारीखें इतिहास का हिस्सा बन चुकी हैं। अब तो 9 नवंबर को याद रखने की जरूरत है जिस तारीख को रामलला के भव्य और दिव्य मंदिर निर्माण का मार्ग को प्रशस्त हुआ।

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