सतलोक आश्रम प्रमुख रामपाल, जो नवंबर 2014 से जेल में बंद हैं, को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने उनके खिलाफ अक्टूबर 2018 में सुनाई गई उम्रकैद की सज़ा को निलंबित कर दिया है। यह फैसला 2014 में उनके आश्रम में हुई पाँच लोगों की मौत के मामले में आया है। यह एक हफ्ते में दूसरी बार है जब रामपाल को सज़ा निलंबन का लाभ मिला है।
रामपाल को नवंबर 2014 में हाईकोर्ट के आदेश पर गिरफ्तार किया गया था, जब उन्होंने अवमानना केस में अदालत में पेश होने से इनकार कर दिया था। गिरफ्तारी अभियान के दौरान भारी हिंसा हुई, जिसमें 6 लोगों की जान गई, जबकि 110 पुलिसकर्मी और 70 नागरिक घायल हुए थे।
वरिष्ठ अधिवक्ता विनोद घई ने बताया कि 2014 की घटना के बाद कुल पाँच आपराधिक मामले दर्ज किए गए थे। इनमें से दो मामलों में रामपाल बरी हो चुके हैं, और दो मामलों में (28 अगस्त व 2 सितंबर को) उनकी सज़ा निलंबित कर दी गई है। हालांकि, एक और केस हिसार की अदालत में अभी विचाराधीन है और उसमें उन्हें ज़मानत नहीं मिली है, इसलिए वह अभी जेल से बाहर नहीं आ पाएंगे।
जस्टिस गुरविंदर सिंह गिल और जस्टिस दीपिंदर सिंह नलवा की खंडपीठ ने आदेश दिया कि रामपाल 74 वर्ष के हैं और 10 साल 8 महीने जेल में बिता चुके हैं। इसलिए उनकी अपील लंबित रहने तक सज़ा को निलंबित किया जाता है। अदालत ने यह भी कहा कि यदि वह ज़मानत की शर्तों का उल्लंघन करते हैं या अनुयायियों को हिंसा के लिए उकसाते हैं, तो उनकी ज़मानत रद्द की जा सकती है।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि रामपाल किसी तरह की “भीड़ मानसिकता” को बढ़ावा नहीं देंगे और ऐसे आयोजनों में शामिल नहीं होंगे जहाँ शांति-व्यवस्था भंग होने का खतरा हो।
सज़ा निलंबन वाले केस में आरोप था कि चार महिलाओं और एक बच्चे को आश्रम के एक कमरे में बंधक बनाकर रखा गया था, जहाँ दम घुटने से उनकी मौत हो गई। इसी मामले में हिसार की अदालत ने अक्टूबर 2018 में उन्हें उम्रकैद दी थी।
दूसरे केस (28 अगस्त वाला) में एक महिला की मौत हुई थी और आरोप था कि आश्रम में महिलाओं को भोजन व रहने की सुविधा तक नहीं दी गई थी, जिससे दम घुटने से उनकी मौत हो गई। इसमें भी अक्टूबर 2018 में हिसार कोर्ट ने उम्रकैद दी थी।