अग्रोहा के पास स्थित कुलेरी गांव के सौ परिवारों में दूसरे राज्य की बहुएं हैं। इनमें से ज्यादातर परिवार खेती पर निर्भर हैं। कम जोत और कम पढ़ाई के कारण हरियाणा में इनको बहुएं नहीं मिलीं तो इन्होंने सुदूर प्रदेशों में बच्चों के लिए रिश्ते देखने शुरू कर दिए। इन बहुओं की बदौलत इस गांव की पांच राज्यों (झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और असम) में रिश्तेदारियां हैं। दूसरे राज्यों की बहुएं, ससुराल आकर पूरी तरह से हरियाणवी रंग-ढंग में ढल चुकी हैं। चूल्हे-चौके से लेकर खेत तक का कामकाज आसानी से संभाल रहीं हैं। बोली-भाषा के साथ-साथ उनका खान-पान, पहनावा और काम करने का ढंग भी हरियाणवी हो गया है।
गांव कुलेरी में 1800 परिवार हैं। सरपंच मनीषा निठारवाल का कहना है कि 15 साल पहले गांव में एक परिवार दूसरे राज्य से बहू लाया था। उसने मेहनत और प्यार से परिवार का दिल तो जीता ही, साथ ही ग्रामीणों की नजर में भी अच्छी पहचान बनाई। इसके बाद धीरे-धीरे गांव में परदेसी बहुओं की संख्या बढ़ती चली गई। इन बहुओं ने गांव में सिलाई सेंटर से लेकर ब्यूटी पार्लर तक खोले, ताकि परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया जा सके।
खाना पकाने से लेकर भैंसें तक संभाल रहीं परदेसी बहुएं : बलवान, रमेश और बलजीत की असम के गुवाहाटी में शादी हुई है। तीनों बहुओं ने घर को पूरी तरह संभाल रखा है। परदेसी बहुएं सोनू, गीतू और पिंकी ने हर काम बांट रखे हैं। एक चूल्हे पर खाना पकाती है, तो दूसरी भैंसों को संभालती है और तीसरी घर की साफ-सफाई करती है।
हिसार के गांव कुलेरी में संदीप भाकर अपनी पत्नी के सिर पर सामान रखवाते हुए।
किसी ने घूंघट काढ़ना सीखा तो किसी ने भैंस का दूध पहली बार निकाला : गांव में बीरबल भाकर के चार बेटों में से दो की शादी 2014 में बिहार के बक्सर में हुई। दोनों के तीन-तीन बच्चे हैं। बीरबाल के बेटे संदीप ने बताया कि पिताजी हरियाणा में ही रिश्ता देख रहे थे, मगर कोई लड़की नहीं मिली। इसके बाद गांव में किसी ने कहा कि परदेस से बहू लाकर ब्याह दे, वरना छोरा कुंवारा रह जाएगा। इसके बाद बिहार में शादी हुई। एक बहू बिहार से आई तो दूसरे का भी रिश्ता वहीं कर दिया। परदेसी बहू गुड़िया बताती हैं कि उसने घूंघट काढ़ने के साथ ही भैंस का दूध निकालने से लेकर खेत में काम करना यहीं सीखा। जब भी खाली समय मिलता है तो बच्चों को भी पढ़ा लेती हूं।