कुछ ही दिनों में देश के अलग-अलग राज्यों की 56 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है। मध्य प्रदेश की 24 सीटों के बाद सबसे रोचक मुकाबला हरियाणा के सोनीपत जिले की बरोदा विधानसभा सीट पर होगा। इस पूरे बरोदा हलके का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। कहते हैं 1857 के गदर को दबाने के लिए जिस अंग्रेज टुकड़ी ने अंबाला से दिल्ली की तरफ कूच किया था उस पर पहला हमला इसी क्षेत्र के लोगों ने किया था। यहां के युवाओं ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलकूद प्रतियोगिताओं में देश और राज्य दोनों का नाम खूब रोशन किया है। अपनी प्रगतिवादी सोच और मेहनत के दम पर यहां के किसान परिवार के बेटे- बेटियों ने भी देशभर में बड़े-बड़े सरकारी ओहदे हासिल किए हैं। देश के पहले उप प्रधानमंत्री ताऊ देवीलाल से लेकर भूपेंद्र सिंह हुड्डा तक कई मुख्यमंत्री भी इसी क्षेत्र की देन हैं। मलिक, मोर, सांगवान, और नांदल प्रजाति के 50 फीसदी जाट मतदाता ही यहां के राजनीतिक समीकरणों की पटकथा लिखते हैं। वर्चस्व के हिसाब से दूसरा नंबर यहां ब्राह्मणों का आता है। कौशिक, वशिष्ठ तथा भारद्वाज गोत्र के ब्राह्मण यहां की अन्य जातियों के साथ जबरदस्त भाईचारे और तालमेल की मिसाल हैं। जाटव (नरवाल), खटीक(खटक), धोबी, नाई, बढ़ाई इत्यादि अन्य जातियां भी यहां अपना राजनीतिक महत्व रखती हैं। भौगोलिक रूप से बरोदा हलके के 54 गांव सोनीपत, गोहाना, रोहतक, और झज्जर जैसे बड़े शहरों से गिरे हुए हैं।
पिछले 3 विधानसभा चुनावों में क्षेत्र का नेतृत्व कांग्रेस के श्रीकृष्ण हुड्डा विधानसभा में करते रहे हैं। उन्हीं के अकस्मात निधन के कारण इस सीट पर पुन्: उपचुनाव की नौबत आई है। उनसे पहले वर्ष 2009 तक यह सीट आरक्षित रही है और इंडियन नेशनल लोकदल के अलग-अलग रूपों का यह गढ़ हुआ करती थी। लेकिन हरियाणा की राजनीति में भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे दिग्गज जाट क्षत्रप नेता के उदय के बाद यह सीट कांग्रेस का ऐसा अभेद्य किला बनी जिसे टकराकर मोदी लहर भी पीछे लौट गई। 2014 और 2019 के विधानसभा चुनावों में भले ही भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी हो लेकिन बड़ौदा में उसके उम्मीदवार को करारी हार का सामना करना पड़ा। इस पूरे क्षेत्र में अपनी जबरदस्त पकड़ के चलते भूपेंद्र सिंह हुड्डा लगातार दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री पद पर रहे। इन 9 वर्षों में उन्होंने लोगों का ऐसा विश्वास जीता जिसे आज तक सत्ता में ना रहने के बावजूद भी कोई नहीं हिला पाया है। सत्तरवें दशक के अंत में आई फिल्म डॉन का एक डायलॉग था डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है। यही डायलॉग कुछ हद तक भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर लागू होता है। यहां हुड्डा के उम्मीदवार को हराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन लगता है। यहां कांग्रेसका मतलब भूपेंद्र सिंह हुड्डा हैं।
करीब 10 महीने पहले हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने कुश्ती में स्वर्ण पदक विजेता योगेश्वर दत्त को अपना उम्मीदवार बनाया था। जबकि चौधरी देवी लाल की जोत और उनके पुत्र ओम प्रकाश चौटाला से अलग होकर जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) बनाने वाले युवा नेता दुष्यंत चौटाला ने अपने पुराने भरोसेमंद और यहां के लोकप्रिय नेता भूपेंद्र मलिक को मैदान में उतारा था। जबकि अभय चौटाला के नेतृत्व वाले इंडियन नेशनल लोकदल ने भी दिग्गज जोगिंदर मलिक पर दांव खेला था। लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार श्री कृष्ण हुड्डा ने तीनों दिग्गजों को मात दी थी।
आप इस बार के विधानसभा चुनावों में भाजपा और जेजेपी ने साथ मिलकर यह उप चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। इसी घोषणा ने राजनीतिक गोटियां को उलझा दिया है। इस सीट पर हरियाणा के गठन ,(1966) से लेकर अब तक भाजपा जीतना तो दूर कभी टक्कर में भी नहीं रही (2019 के अपवाद को छोड़कर)। जबकि जेजेपी का यहां एक परंपरागत वोट बैंक और मजबूत सांगठनिक ढांचा है। ऐसे में यहां टिकट की दावेदारी जेजेपी की भी बनती है। जबकि भाजपा इस समय सत्ता में है और पिछली बार उसका उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहा था इसलिए वह अपनी दावेदारी ठोक रही है। ऐसे में बीजेपी और भाजपा के बीच गठबंधन होते हुए भी इस सीट को लेकर तनाव बढ़ सकता है। ऐसे में अगर जेजेपी भाजपा उम्मीदवार का समर्थन करती है तो वह अपने लोगों और नेताओं को कैसे एडजस्ट करेगी यह प्रश्न उसके सामने बड़ी समस्या बन गया है। ऐसे में उसके नेताओं ने भाजपा के सामने बीच का रास्ता निकालने का प्रस्ताव रखा था जिसमें उम्मीदवार जेजेपी का हो और सिंबल भाजपा का मिल जाए तो वह दोनों मिलकर कांग्रेस उम्मीदवार को कड़ी टक्कर दे सकते हैं। लेकिन भाजपा ने उसके इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया है। इंडियन नेशनल लोकदल में टूट के बाद उसके एक बड़े दिग्गज नेता कपूर नरवाल जो कि इस क्षेत्र में लोकप्रिय भी हैं और जमीनी नेता हैं इसी शर्त पर भाजपा में गए थे कि उनको पार्टी यहां से उम्मीदवार बनाएगी। लेकिन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की पहली पसंद इसलिए उम्मीदवार योगेश्वर दत्त हैं। पूरा प्रशासनिक अमला भी बड़ौदा में योगेश्वर दत्त को ही रिपोर्ट कर रहा है ऐसे में उनकी उम्मीदवारी लगभग तय मानी जा रही है। लेकिन खतरा यह है कि ऐसी स्थिति में कपूर नरवाल ने अगर नाराज होकर कांग्रेस का दामन थाम लिया तो यहां भाजपा की करारी हार होने से कोई नहीं रोक सकता। जो कि सरकार की स्थिरता और गठबंधन के लिए भी एक बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकती है।
वहीं दूसरी ओर भूपेंद्र सिंह हुड्डा जो कि अपने पत्ते अंत तक ना खोलने के लिए प्रसिद्ध हैं अपने सभी विकल्प खुले रखे हैं। योगेश्वर दत्त की उम्मीदवारी की स्थिति में उनकी नजर भाजपा के बागी कपूर नरवाल और जे जे पी के संभावित बागी भूपेंद्र मलिक पर है। यह दोनों ही नेता ऐसे हैं जिनका जनाधार अगर कांग्रेस के साथ मिल जाए तो एक बहुत बड़ा वोट बैंक खड़ा कर देगा। योगेश्वर दत्त की उम्मीदवारी एक और बड़े नेता केसी बांगड़ की नाराजगी का रास्ता भी खोल सकती हैं। वह भी गठबंधन की तरफ से अपनी उम्मीदवारी का दावा ठोक रहे हैं ।
वही हुड्डा की पहली पसंद प्रदीप सांगवान हैं। जोकि सोनीपत से सांसद सांसद रहे किशन सिंह सांगवान के पुत्र हैं। जो भाजपा से नाराज होकर 4 साल पहले कांग्रेस में शामिल हुए थे। वह भूपेंद्र सिंह हुड्डा के न केवल नजदीकी हैं बल्कि क्षेत्र में काफी लोकप्रिय भी हैं । पिछले साल जब खुद भूपेंद्र सिंह हुड्डा सोनीपत से लोकसभा चुनाव लड़े थे तो उसमें प्रदीप सांगवान ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अगर टिकट ना मिलने पर भूपेंद्र मलिक गठबंधन से अलग हुए तो हुड्डा उन पर भी दांव लगा सकते हैं। जबकि तीसरे नंबर पर उनकी पसंद स्वर्गीय श्री कृष्ण हुड्डा की पत्नी हैं।
मजेदार बात यह है कि एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि यदि आज चुनाव हो तो कांग्रेस को 40 % बीजेपी को 30 % इंडियन नेशनल लोकदल को 10 % वोट मिल सकते हैं । लेकिन 24% वोट ऐसे हैं जिन की पसंद फिलहाल कोई नहीं है और वह किसी अन्य विकल्प की तलाश में हैं। इसी वोट बैंक पर नई नवेली आम आदमी पार्टी की नजर है। जिसने पिछले चुनाव में जेजेपी के साथ गठबंधन किया था। लेकिन जेजेपी द्वारा भाजपा के साथ हाथ मिला लेने के बाद आम आदमी पार्टी अलग हो गई और अपना अलग संघर्ष शुरू कर दिया। यहां मुख्य रूप से चार पार्टी मुकाबले में है लेकिन छह बड़े दिग्गज नाम टिकट के लिए सामने आए हैं । ऐसे में इंडियन नेशनल लोकदल के अलावा भी एक-दो मी द्वार ऐसे मजबूत पकड़ वाले जरूर बचे रहेंगे जिन पर आम आदमी पार्टी भी दांव खेल सकती है। क्योंकि दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल खुद हरियाणा से हैं इसलिए पार्टी यहां अपना व्यापक जनाधार भी देख रही है। ऐसे में इस सीट पर जीत हार से भले ही सरकार की स्थिरता पर फिलहाल कोई असर पड़ता हुआ ना दिखाई दे लेकिन इस सीट का चुनाव परिणाम भविष्य की राजनीति के नए समीकरण जरूर तैयार कर देगा यही वह बात है जो इस उपचुनाव को और अधिक रोचक बनाती है। फिलहाल जमीनी हकीकत और तमाम जातीय समीकरणों को देखते हुए यहां भूपेंद्र सिंह हुड्डा सब पर भारी पड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं।
विशेष रिपोर्ट: बरोदा में हुड्डा को हराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा है
