बस्तर समेत राज्य के विभिन्न हिस्सों में स्वतः उगने वाले चरोटा के बीज से स्थानीय ग्रामीणों को अतिरिक्त आमदनी हो रही है। चरोटा बीज स्थानीय मंडी से से खरीदकर राजधानी स्थित एग्रो फर्म को भेजते हैं, जिनके जरिए इसका निर्यात मलेशिया समेत अन्य देशों में किए जाने की जानकारी मिली है। स्थानीय मंडी में अब तक 600 क्विंटल चरोटा बीज की आवक हो चुकी है। एक से डेढ़ हजार क्विंटल चरोटा बीज हर साल मंडी पहुंचता है। चरोटा के बीज का इस्तेमाल काफी पाउडर, आइसक्रीम, चाकलेट, ग्रीन टी समेत साबुन व सौंदर्य प्रसाधन बनाने में किया जाता है।
चरोटा सीजल पीनेसी कुल का पौधा बताया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम केशिया टोरा है। इसे चकोड़ा व दुवाड़ भी कहा जाता है। यह मेथी के पौधे सा दिखता है। इसमें पीले फूल लगते हैं। अन्य इलाकों की तरह बस्तर में भी यह बहुतायत में पाया जाता है। जंगल व रिक्त भूमि में यह बरसात के दिनों में उगता है। ग्रामीण इसकी भाजी भी चाव से खाते हैं। ठंड के मौसम में इसकी फलियां पकने लगती हैं। ग्रामीण इन फलियों से बीज निकालकर मंडी में विक्रय करते हैं। अभी 15 रूपये प्रति किलो की दर से इसकी खरीदी थोक में हो रही है। स्थानीय मंडी में इसकी अच्छी आवक है। अब तक करीब 600 क्विंटल चरोटा की आवक दर्ज की गई है।
स्थानीय मंडी व्यापारी इसे क्रय कर राजधानी स्थित एग्रो कंपनियों को भेजते हैं, जिनके माध्यम से इसका विदेशों में भी एक्सपोर्ट होता है। मंडी कर्मचारियों ने बताया कि मलेशिया में चरोटा बीज की खासी डिमांड है। मंडी में हर वर्ष करीब एक से डेढ हजार क्विंटल चरोटा बीज की आवक होती है। ग्राम तुसेल निवासी ग्रामीण सुरजो बघेल ने बताया कि उनके यहां की महिलाएं चरोटा बीज का संग्रहण करती हैं। मंडी प्रशासन द्वारा इसके आवक पर कर वसूल नहीं किया जाता है ताकि ग्रामीणों को अधिक दाम मिल सके।
अच्छी आवक हो रही
चरोटा बीज की हर साल अच्छी आवक होती है। इसके जरिए ग्रामीणों को अतिरिक्त आमदनी हो जाती है। इसकी खरीदी कर रायपुर स्थित फर्मो को भेजा जाता है, जहां से विदेश समेत अन्य स्थानों पर इसे बेचा जाता है। – दिनेश राजपुरिया, मंडी कारोबारी