उत्तराखंड: सरकारी क्षेत्र का कोई नशा मुक्ति केंद्र नहीं, लाइसेंस की प्रक्रिया तक नहीं |

युवाओं में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति को लेकर गहरी चिंता जताने वाली प्रदेश सरकार ने अपने स्तर पर एक अदद नशा मुक्ति केंद्र स्थापित करने तक की जहमत नहीं उठाई। ये तथ्य हैरान करने वाला है कि प्रदेश में सरकारी क्षेत्र का एक भी नशा मुक्ति केंद्र नहीं है। सभी नशा मुक्ति केंद्र स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से संचालित हो रहे हैं।

विडंबना यह है कि राज्य गठन के 20 साल बाद भी सरकार ने इन नशा मुक्ति केंद्रों के पंजीकरण और लाइसेंस की व्यवस्था तक नहीं की। निदेशक समाज कल्याण विनोद गिरी गोस्वामी कहते हैं,‘नशे के खिलाफ जन जागरूकता को लेकर एक विस्तृत कार्ययोजना तैयार की गई है, जिसमें नशामुक्ति केंद्रों के लाइसेंस का प्रावधान रखा गया है।

यह तथ्य भी सामने आया है कि प्रदेश में जहां तहां चल रहे नशामुक्ति केंद्रों के बारे में नशा विरोधी अभियान की नोडल एजेंसी समाज कल्याण विभाग को कोई जानकारी नहीं है। विभागीय रिकार्ड के हिसाब से प्रदेश में नैनीताल, हरिद्वार, पिथौरागढ़ व चमोली में चार नशा मुक्ति केंद्र संचालित हो रहे हैं और इन सभी के संचालक गैर सरकारी संगठन हैं।

यह जानकारी भी विभाग के पास इसलिए उपलब्ध है, क्योंकि इन चारों संगठनों को केंद्रीय अनुदान लेने की प्रक्रिया पूरी करने के लिए विभाग से संस्तुति करानी होती है। एनजीओ और निजी क्षेत्र द्वारा संचालित केंद्रों के अपने नियम कायदे हैं। चूंकि इन पर निगाह रखने के लिए सरकार का कोई प्रभावी तंत्र नहीं है, लिहाजा इनके भीतर चल रही गतिविधियों को लेकर उठने वाले सवालों के जवाब भी नहीं मिल पाते हैं।

निजी केंद्रों का खर्च वहन करना गरीबों के संभव नहीं 

नैनीताल जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव जज इमरान खान भी सरकारी क्षेत्र में नशा मुक्ति केंद्र न होने की बात उठाते हैं। वह कहते हैं, ‘उत्तरकाशी और अल्मोड़ा में ऐसे केंद्र प्रारंभ किए गए थे, लेकिन उनमें चिकित्सक और नशे के आदी मरीजों को भर्ती करने की व्यवस्था न होने से वे निष्प्रयोज्य हो गए, जबकि अन्यत्र भी कोई व्यवस्था नहीं है। निजी केंद्रों का खर्च वहन करना गरीब परिवारों के लिए संभव नहीं हो पाता। उन्होंने बताया कि नैनीताल में प्राधिकरण ने निजी प्रयासों एवं निजी केंद्रों के सहयोग से गरीब बच्चों का मुफ्त इलाज करवाया है।’

नशा मुक्ति केंद्र का प्रस्ताव तैयार

सरकारी क्षेत्र के पहले नशा मुक्ति केंद्र का प्रस्ताव तैयार हो गया है। ये प्रस्ताव एसटीएफ ने तैयार कर शासन को भेज दिया है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एक बैठक के दौरान सरकारी क्षेत्र में नशा मुक्ति केंद्र खोलने के आदेश दिए थे। सूत्रों के अनुसार, एसटीएफ की डीआईजी रिद्धिम अग्रवाल ने प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेज दिया है।

संकल्प नशामुक्त देवभूमि अभियान चलाने वाला पहला राज्य बना उत्तराखंड

उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन की पहल पर उत्तराखंड राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ने राज्य में नशे के बढ़ते चलन के खिलाफ ‘संकल्प नशामुक्त देवभूमि अभियान’ के तहत व्यापक स्तर पर कार्यक्रम चलाए हैं। इसके तहत सभी 13 जिलों में जिलों और तहसील स्तर पर समितियों का गठन किया गया है। ये समितियां नशे के आदी बच्चों के इलाज, काउंसलिंग, पुनर्वास सहित भांग, डोडा इत्यादि की खेती और दुकानों में प्रतिबंधित नशे की दवाओं की बिक्री पर अंकुश लगाने सहित कई कार्य करा रही हैं।

हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन की पहल और दिशा-निर्देश में यह कार्यक्रम चल रहा है। इसकी शुरुआत सितंबर में देहरादून में की गई, जहां मुख्य न्यायाधीश एवं हाईकोर्ट के अन्य न्यायाधीशों सहित प्रदेश के मुख्य सचिव, डीजीपी और वरिष्ठ अधिकारियों ने इसे लांच किया था।

इसके तहत सभी 23 जिलों में जिला एवं तहसील स्तर पर स्पेशल टीम गठित की गईं हैं, जिनमें न्यायिक अधिकारियों सहित तहसीलदार, पुलिस इंस्पेक्टर, एसडीएम, पैरा लीगल वॉलेंटियर्स, एनजीओ आदि शामिल हैं। इसके अलावा नैनीताल में नैनीताल और रामनगर में दो जिला स्तरीय टीमें भी हैं। ये टीमें विभिन्न विद्यालयों में जाकर विद्यार्थियों को नशे के खिलाफ जागरूक करने, उनके अभिभावकों को बच्चों को नशे से बचने की टिप्स देने के कार्य करती हैं।

नैनीताल में कार्यक्रम के संचालक सिविल जज सीनियर डिविजन एवं सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण इमरान मोहम्मद खान ने बताया कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से शुरू किए गए कार्यक्रम में नैनीताल में इस संबंध में एक और भी पहल की गई है। यह राज्य का एकमात्र जिला है, जहां चार विभिन्न निजी नशा मुक्ति केंद्रों के सहयोग से नशे के आदी गरीब घरों के लगभग 40 बच्चों का मुफ्त इलाज भी करवाया है।

उन्होंने बताया कि उत्तराखंड राज्य देश में एकमात्र है, जहां इस अभियान की शुरुआत की गई है। इस अभियान के तहत अब तक जिले के 220 स्कूलों में प्रधानाध्यापकों के नेतृत्व में एंटी ड्रग क्लब भी बनाए गए हैं, जिनमें विद्यार्थी और स्वयंसेवक भी शामिल हैं। इसके माध्यम से संदिग्ध लोगों पर भी नजर रखी जाती है। जिला स्तर की समितियां जेल में बंद नशे के कारोबारी रहे कैदियों की प्रत्येक शनिवार को काउंसलिंग भी करती है।

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