झारखंड में भाजपा ने सीएम रघुवर दास के जिस चेहरे पर दांव लगाया, उसी चेहरे ने पार्टी को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया। परिणाम के बाद पार्टी मानती है कि पूरे राज्य में सीएम रघुवर और उनकी सरकार के खिलाफ जबर्दस्त नाराजगी थी। नाराजगी का आलम यह था कि पार्टी बीते चुनाव में जीती 37 सीटों में से अपने सीएम की सीट सहित 23 सीटें गंवा दी।
शहरी क्षेत्र में जहां कांग्रेस के जबर्दस्त प्रदर्शन ने पार्टी को बैकफुट पर धकेला, वहीं आदिवासी क्षेत्र में झामुमो के आगे पार्टी का कोई भी आदिवासी चेहरा नहीं टिक पाया। हरियाणा और महाराष्ट्र की तरह ही पार्टी को औद्योगिक क्षेत्रों में हार का सामना करना पड़ा।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक पहले दो चरण के मतदान के बाद ही नेतृत्व को अहसास हो गया था कि चुनाव में सर्वाधिक नुकसान सीएम की नकारात्मक छवि से हो रहा है। हालांकि जानकारी ऐसे समय में मिली जब पार्टी नेतृत्व बहुत कुछ करने की स्थिति में नहीं था। कार्यकर्ता स्तर पर चुनाव बाद नेतृत्व परिवर्तन का संदेश दिया गया, मगर यह जनता तक नहीं पहुंच पाया।
खासतौर पर जुझारू और ईमानदार छवि वाले सरयू राय के खिलाफ की गई कार्रवाई रही सही कसर पूरी कर दी। इसका साफ संदेश गया कि पार्टी में ईमानदार नेताओं की कोई कद्र नहीं है। इसके अलावा गठबंधन के स्तर पर चूक भी भाजपा पर भारी पड़ गई। आजसू से सालों पुराना गठबंधन एक झटके में तोडना और लोजपा को भाव नहीं देने की रणनीतिक चूक भी भारी पड़ गई।
औद्योगिक और शहरी क्षेत्रों में भी झटका
चुनाव में पार्टी को बोकारो, कोडरमा, घाटशिला, चतरा, देवघर, दुमका, हटिया, जमशेदपुर, गढ़वा, रांची जैसी शहरी और आद्योगिक सीटों से हाथ धोना पड़ा। सूबे में यही क्षेत्र भाजपा की ताकत रहे हैं। पार्टी के रणनीतिकार मान रहे हैं कि आर्थिक मंदी के कारण इन क्षेत्रों में कारोबार और उद्योग पर पड़े प्रतिकूल प्रभाव के कारण कट्टर समर्थक जहां वोट देने केलिए नहीं निकले, वहीं एक बड़े वर्ग ने पार्टी के खिलाफ वोट दिया।
वोट बढ़े मगर घट गई सीटें
बीते चुनाव के मुकाबले भाजपा के वोट प्रतिशत में दो फीसदी से अधिक की बढ़ोत्तरी हुई, मगर पार्टी की सीटें 37 से घट कर 25 रह गई। हालांकि पार्टी सात महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन के पास भी नहीं फटक पाई। लोकसभा चुनाव के मुकाबले पार्टी के वोट में करीब 17 फीसदी की कमी आई। हालांकि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव की तुलना में भी उसी साल हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी के वोट में करीब 8 फीसदी की कमी आई थी।