सियासी शतरंज: जदयू की गुटबाजी में आरसीपी-ललन से हारे प्रशांत किशोर

जनता दल यू से प्रशांत किशोर और पवन वर्मा की छुट्टी की मुख्य वजह नीतीश कुमार के उत्तराधिकार की लड़ाई है, जिसमें आरसीपी सिंह और ललन सिंह के सामने प्रशांत किशोर (पीके) गुट को हार का सामना करना पड़ा।

बिहार के 68 वर्षीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी में दूसरी पंक्ति का नेतृत्व तैयार करने की है। इस वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद वे अपनी भूमिका सीमित करने के मूड में हैं। उनके बाद पार्टी नेतृत्व की दौड़ में आरसीपी सिंह, संजय झा, ललन सिंह और प्रशांत किशोर सबसे आगे थे।

ललन सिंह पहले आरसीपी के विरोधी थे, लेकिन पीके के बढ़ते कद को देख दोनों ने हाथ मिला लिए। पार्टी सूत्रों के अनुसार ये दोनों नेता केंद्र सरकार में जदयू कोटे से मंत्री नहीं बनने के लिए भी पीके को जिम्मेदार मानते थे। दरअसल जदयू को एक कैबिनेट और एक राज्यमंत्री का प्रस्ताव मिला था।

अमित शाह आरसीपी सिंह को कैबिनेट और ललन सिंह को राज्यमंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन पीके ने नीतीश कुमार को बताया कि राज्यमंत्री के प्रस्ताव से ललन सिंह नाराज हो गए हैं। ऐसे में दोनों ही मंत्री नहीं बन पाए और पीके से नाराज हो गए।

तीन तलाक पर मतभेद

दोनों खेमों के बीच मतभेद का पहला संकेत तीन तलाक बिल पर पार्टी के बदलते रुख से मिला। प्रशांत किशोर की सलाह पर जदयू ने पहले इसका विरोध किया, लेकिन संसद से पारित होने के बाद रुख पलटने वाला बयान आरसीपी सिंह की ओर से आया। जदयू के पूर्व सांसद पवन वर्मा को पीके से नजदीकियों के चलते ही बागी तेवर अपनाने की कीमत चुकानी पड़ी।

झारखंड चुनाव अलग लड़े

पीके ने झारखंड चुनाव भाजपा से अलग लड़ने का एलान करा दिया। वे जदयू को भाजपा की छाया से निकालकर राष्ट्रीय स्तर पर ले जाना चाहते थे। इसमें उन्हें नीतीश कुमार का समर्थन था, लेकिन राज्य में झामुमो के पास वही चुनाव निशान पहले से होने की वजह से जदयू को नया चुनाव चिह्न मिला और पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा।

नीतीश पर डाल रहे थे भाजपा से अलग होने का दबाव

पीके नीतीश कुमार पर लगातार भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ने का दबाव डाल रहे थे। उनका मानना था कि यदि जदयू अपने दम पर राज्य विधानसभा की 240 में से 80 से 90 सीटें जीत लेती है, तो राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई जा सकती है। लेकिन अमित शाह ने जदयू को बिहार में बड़े भाई का दर्जा देने का एलान कर पीके के मंसूबों को ठंडा कर दिया। माना जा रहा है कि अब जदयू 110, भाजपा 100 और लोजपा 30 सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं।

पीके की महत्वाकांक्षा

2014 के संसदीय चुनाव में अपनी कंपनी आईपैक के जरिये भाजपा के चुनाव प्रचार की कमान संभालने वाले प्रशांत किशोर फिलहाल बंगाल में टीएमसी, दिल्ली में आम आदमी पार्टी, महाराष्ट्र में शिवसेना और तमिलनाडु में कमल हासन के साथ काम कर रहे हैं।

उनकी टीम ने पंजाब में कांग्रेस के अमरिंदर सिंह के लिए काम किया और आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस के लिए। उनका मानना है कि राजनीति और व्यवसाय अलग-अलग है। संभावना है कि प्रशांत अपनी पार्टी बना कर बिहार विधानसभा चुनाव में उतर सकते हैं।

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