उत्तरायण पर्व के अब एक दिन से कम का समय बचा है। एक अठवाड़िया के पहले से ही पतंग, मांझे की दुकाने सज गई है। मांझा लगने सिलसिला शुरु हो जाता है। तरह-तरह की रंग बिरंगी फिरकी की बिक्री भी शुरु हो जाती है। लेकिन इस बार मंहगाई की मार के कारण उत्तरायण का यह पर्व फीका नजर आ रहा है। जिसके कारण पतंग-मांझे और फिरकी की बिक्री पर इसका विपरीत असर पड़ा है। इस सुस्ती के कारण व्यापारियों में चिंता का माहौल है। व्यापारियों सोमवार दोपहर के बाद से पंतग बाजर में खरीदी बढ़ने की अखिरी उम्मीद है। इस बार पतंग में सीएए और एनआरसी का विरोध वाला संदेश छफा है। उत्तरायण के आकाश में भी इसका विरोध होगा।
इस बार पतंग-माँझे और फिकरी के दाम में 15-20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पतंग की एक कौड़ी की कीमत 50 से 250 रुपये है। इस बार बाजार मे भीम. टोम एण्ड जेरी सहित कार्टून, पबजी गेम्स एवं आर्मी के चित्रों वाले पतंग सजे हुए है। पतंग प्रिय लगों में ये लोकप्रिय हो रहे है। वहीं चील पतंग अहमदाबादियों में फेवरिट है। यहां पांच हजार गत मांझे की कीमत 400 से 600 रुपये तक है। बाजार में पतंग की तुलना में पिपहरी, गोगल्स, कैप सहित अन्य सहयोगी सामानों की बिक्री अधिक है।
अहमदाबाद में पतंग की मुख्य बाजार कालूपुर, रायपुर, जमालपुर, दिल्ली दरवाजा के व्यापारियों को अभी तक छिट-पुट ब्रिकी के साथ ही इसमें वृद्धि की आशा है। कालूपुर के व्यापारी मुकेश भाई ने बता कि गत वर्ष की तुलना में इस साल पंतग मांझे की बिक्री में 30 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। इसका मुख्य कारण महंगाई है और मंदी है। पतंगों पर जीएसटी लगने से इसमें वृद्धी हुई है, जिसके कारण इसका असर बिक्री पर पड़ा है। पतंग खरीदी एक अड़वाडिया से शुरु हो जाती थी। उत्तरायण रविवार अवकाश का दिन होते हे भी पतंग बाजार में कोई खास ब्रिकी नहीं हुई है। व्यापारियों को आशा है कि दोपहर 2 बजे के बाद बाजारों में चहल-पहल बढ़ जायेगी और पतंग-मांझे की बिक्री होगी ।