सरकार सुप्रीम काेर्ट से मांगेगी सशर्त अनुमति, यदि मिली ताे 50 हजार को प्रमाेशन का फायदा |

भोपाल | नए साल में प्रदेश में अधिकारी-कर्मचारियों की पदोन्नति का रास्ता खुल सकता है। इस मामले में सुप्रीम काेर्ट में 28 जनवरी काे सुनवाई हाेनी है। इसी दाैरान राज्य सरकार काेर्ट से सशर्त पदाेन्नति की अनुमति मांगेगी। यदि अनुमति मिली तो करीब 50 हजार अधिकारी-कर्मचारियों को इसका लाभ मिल सकता है। प्रदेश में बीते साढ़े तीन साल से प्रमाेशन की प्रक्रिया अटकी हुई है।

इससे करीब 50 हजार अफसर व कर्मचारी बिना पदाेन्नति के रिटायर हाे चुके हैं अाैर इतने ही 31 मार्च 2020 काे बिना किसी लाभ के रिटायर हाे जाएंगे। एेसे में प्रशासनिक ढांचे के चरमराने की स्थिति बनने लगी है। सरकार इसी स्थिति से निपटने के लिए दूसरा रास्ता तैयार कर रही है। सामान्य प्रशासन विभाग के प्रस्ताव काे मुख्यमंत्री सचिवालय से मंजूरी मिल गई है। 30 अप्रैल 2016 में हाईकोर्ट जबलपुर ने राज्य सरकार के पदोन्नति में आरक्षण संबंधी नियम 2002 निरस्त कर दिए थे।

इसके बाद से प्रदेश की सेवा में कार्यरत और भर्ती होने वाले कर्मचारियों के प्रमोशन के कोई नियम ही नहीं है। तत्कालीन भाजपा सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन कोर्ट ने प्रमोशन की स्थिति यथावत रखने को कहा है। तब से पूरी तरह से प्रमोशन पर रोक लग गई है।

अनुमति मिली ताे…. पदाेन्नति देने का यह हाेगा फाॅर्मूला

  •  काेर्ट से यदि सशर्त अनुमति मिलती है ताे सरकार ने पदाेन्नति करने का भी एक प्रस्ताव बना रखा है।
  •  इसके मुताबिक प्रदेश में लागू टाइम स्केल की व्यवस्था के अनुसार कर्मचारियों को 10,20 और 30 साल की सेवा के बाद पदोन्नति पद का वेतनमान दिया जा रहा है, लेकिन कर्मचारी का पद नाम नहीं बदल रहा है।
  •  इस स्थिति से निपटने के लिए जिन कर्मचारियों की सेवा 10 साल की हो गई है और उसकी भर्ती सहायक ग्रेड-3 से हुई है तो उसे पदेन सहायक ग्रेड -2 का पदनाम कर दिया जाएगा।
  •  इसी तरह 20 साल बाद सहायक ग्रेड-1 और 30 साल की सेवा के बाद सेक्शन आॅफिसर का पदेन पदनाम दे दिया जाएगा।
  •  इसी तरह सब इंजीनियर

जिनकी सेवा 28 साल पूरी हो गई है, उन्हें सहायक अभियंता का नाम देने जा रही है। 
इस सारी कवायद में वित्त विभाग के आकलन के हिसाब से 50 करोड़ का अतिरिक्त वित्तीय भार आने का अनुमान है।

अब तक क्या हुआ  

  •  सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखने के लिए 2016 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने वकीलों का पैनल गठित किया था।
  •  ओआईसी भी नियुक्ति किए थे, जिन पर तीन साल में 6 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं।
  •  इसके बावजूद जब सरकार के पक्ष में काेर्इ स्थायी समाधान नहीं अाया ताे उसने सभी वकील व अाेअार्इसी हटा दिए।
  •   इसके बाद केस में नया प्रभारी (ओआईसी) नई दिल्ली में आवासीय कार्यालय में पदस्थ अपर आवासीय आयुक्त प्रकाश उन्हाले को बनाया है।
  •  सुप्रीम कोर्ट में 28 जनवरी को सरकार का पक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज गोरकेला रखेंगे, लेकिन सरकार ने फैसला लिया है कि इस मामले में जल्दी फैसला हो सके इसलिए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और इंदिराजय सिंह की भी मदद ली जाएगी।

जल्द सुनवाई का आग्रह करेंगे

प्रदेश में फिलहाल पदाेन्नति के काेर्इ नियम नहीं हैं। इससे पूरी तरह से अधिकारी-कर्मचारियाें के प्रमाेशन रुके हुए हैं। इस स्थिति में सुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से जल्दी से जल्दी सुनवाई किए जाने का आग्रह किया जाएगा। इस बारे में 28 जनवरी को सुनवाई होना है। – प्रकाश उन्हाले, (प्रभारी अधिकारी) अपर आवसीय आयुक्त, नई दिल्ली

सरकार का आग्रह : पहले अनुमति दें, बाद में जाे फैसला हाेगा, वह हम मानेंगे

  •   प्रस्ताव के मुताबिक काेर्ट से इस मामले में जल्द से जल्द सुनवाई कर समस्या का निराकरण करने का अाग्रह किया जाएगा।
  •  सरकार यह भी तर्क देगी कि राज्य में पदाेन्नति का काेई नियम न हाेने से कर्मचारियाें के काम करने की दक्षता प्रभावित हाे रही है।
  •  एेसे में पदाेन्नति में अारक्षण पर जब तक सुप्रीम काेर्ट का काेई फैसला नहीं अा जाता, तब तक यथास्थिति बनाए रखा जाए। इसके लिए सशर्त पदाेन्नति की अनुमति दे दी जाए। बाद में जाे भी फैसला सुप्रीम काेर्ट देगा, उसे सरकार मानेगी।

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