कैग 2019: ब्लड बैंकों का भगवान ही मालिक, मोमबत्ती की लौ से रक्त की थैलियां की जा रही बंद|

उत्तराखंड के ब्लड बैंकों का भगवान ही मालिक है। वे महान रक्तदाताओं के खून की कीमत को समझ नहीं पा रहे हैं। आए दिन रक्तदान के लिए शिविर लगाने वाले ब्लड बैंक कहीं सुविधाओं की कमी तो कहीं अव्यवस्थाओं के मकड़जाल में फंसकर रक्तदाताओं की भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हैं। ये तथ्य भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में उजागार हुआ।

ब्लड बैंकों में खून के क्रास मिलान के लिए एक्सपायर्ड किट का इस्तेमाल हो रहा है। रक्त की थैलियां बंद करने के लिए टयूब सीलर तक उपलब्ध नहीं है और मोमबत्ती की लौ से थैलियां बंद की जा रही हैं। हेपेटाइटिस, सीफिलिस, मलेरिया व एचआईवी सरीखे रक्त संचारित रोगों के लिए और ब्लड ग्रुप सेरोलॉजी के लिए एक ही प्रयोगशाला का इस्तेमाल हो रहा है। जबकि मानकों के हिसाब से अलग प्रयोगशाला होनी चाहिए।

उचित जल निकासी का आभवा था। डिस्पोजेबल आइटम ब्लड बैंक की गैलरी में रखे गए थे। अपशिष्ट रक्त और रक्त नलियाें के परीक्षण की मेज पर रखे गए कूड़ेदान में डाला गया था। गंभीर बात यह है कि इन ब्लड बैंकों की इन कमियों को पकड़ने में भी सिस्टम की कोई खास रुचि नजर नहीं आ रही है। यह तथ्य सामने आया है कि 2015-18 के दौरान  ब्लड बैंकों के 96 निरीक्षण होने चाहिए थे, लेकिन चार साल में केवल 22 निरीक्षण ही हो पाए।

कार्ययोजना तक नहीं

स्टेट ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल (एसबीटीसी) के प्रावधान के हिसाब से उसे एक चरणबद्ध ढंग से रिप्लेसमेंट डोनर्स को कम करने और स्वैच्छिक रक्त दाताओं से सुरक्षित और गुणवत्ता वाले रक्त के संग्रह का 100 प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त करने के लिए एक कार्य योजना तैयार करनी थी। लेकिन एसबीटीसी ने ऐसी कोई कार्ययोजना नहीं बनाई।

इतना नहीं उसकी पर्याप्त बैठकें तक नहीं हुईं। वह सूचना, शिक्षा और संचार के मामले में भी खास सक्रियता नहीं दिखा सका। कैग ने पांच ब्लड बैंकों की नमूना जांच में पाया कि वे 40 प्रतिशत भी लक्ष्य नहीं प्राप्त कर सके। 2015-18 के दौरान सात ब्लड बैंकों में स्वैच्छिक रक्तदान की प्रतिशतता बहुत कम थी। हरिद्वार ब्लड बैंक के मामले में शून्य प्रतिशत था।

1998 से बगैर वैध लाइसेंस के चल रहा ब्लड बैंक

कैग ने पाया कि जिला अस्पताल पिथौरागढ़ में ब्लड बैंक 1998 से बगैर वैध लाइसेंस के संचालित हो रहा है। संयुक्त निरीक्षण टीम ने 2002, 2007 व 2018 में कमियों दूर करने को जो कहा था, उसे भी पूरा नहीं किया गया। लाइसेंस प्राधिकारी ने खराब कार्यपद्धति के बावजूद डोनर और प्राप्तकर्ता दोनों के जीवन को खतरे में डालते हुए कोई कठोर कार्रवाई नहीं की।

35 में से 13 के पास एक्सपार्यड लाइसेंस

एसडीसी के अभिलेखों की जांच में कैग ने पाया कि जून 2018 तक राज्य में संचालित 35 में से 13 ब्लड बैंक जिनमें 12 सरकारी हैं, एक्सपायर्ड लाइसेंस के साथ संचालित  हो रहे थे। इन 13 ब्लड बैंकों में से दून ब्लड बैंक का मामला अनुमोदन के लिए सीडीएससीओ को भेजा गया था और छह ब्लड बैंक लाइसेंस अधिकारियों के निरीक्षण न किए जाने के कारण छह से दो साल तक की अवधि तक बिना लाइसेंस के संचालित हो रहे थे।

छह मामलों में निरीक्षण अधिकारियों ने निरीक्षण किया था और विभिन्न कमियों के उजागर किया था। मसलन प्रयोगशाला और रक्त के भंडारण के लिए पर्याप्त स्थान नहीं था। साफ सफाई नहीं थी। ब्लड बैंकों से इन कमियों को दूर नहीं किया और पिथौरागढ़, उत्तरकाशी जिला अस्पताल के ब्लड बैंक 20 साल और 10 से अधिक वर्षों से बिना लाइसेंस के संचालित होते रहे।

डोनर रजिस्टर न मास्टर रजिस्टर

औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम के तहत ब्लड बैंकों को डोनर रजिस्टर रखना चाहिए जिसमें क्रम संख्या, दान की दिनांक, नाम, पता और डोनर के हस्ताक्षर के साथ आयु का विवरण, वजन, हिमोग्लोबिन, ब्लड ग्रुप, ब्लड प्रेशर, चिकित्सकीय जांच, बैग संख्या, रोगी का विवरण, चिकित्सा अधिकारी के हस्ताक्षर होने चाहिए। जांच में पाया कि एसएस जीना अस्पताल हल्द्वानी को छोड़कर सभी चयनित ब्लड बैंकों में इस रजिस्टर को मानकों के अनुसार नहीं बनाया गया।

जांच में यह भी पाया गया कि एसटीएम मेडिकल कालेज हल्द्वानी, बीडी पांडे जिला अस्पताल पिथौरागढ़, एलडी भट्ट अस्पताल काशीपुर मास्टर रजिस्टर मानकों के अनुरूप नहीं बना रहे थे। इस रजिस्टर मं बैग का सीरियल नंबर, संग्रह की तारीख, समाप्ति की तारीख, मात्रा एमएल में, आरएच समूह, एचआईवी, मलेरिया, हेपेटाइटिस, सीफिलिस के परीक्षण के परिणाम का विवरण के साथ डोनर का नाम, पता, उपयोग, जारी करने की संख्या, घटक तैयार या खारिज किया गया और प्रभारी चिकित्सा अधिकारी के हस्ताक्षर का ब्योरा होना चाहिए।

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