फरीदाबाद जिला प्रशासन ने गुरुवार को अरावली क्षेत्र में एक और बड़ी तोड़फोड़ अभियान चलाया। इस दौरान एक दर्जन से ज्यादा फार्महाउस, बैंक्वेट हॉल, दीवारें और गेट्स को ध्वस्त कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेशों के बावजूद अरावली की संरक्षित वन भूमि पर अवैध निर्माण जैसे गौशालाएं, दुकानें और खाने-पीने की जगहें अभी भी संचालित हो रही थीं।
प्रशासन की टीम ने बुलडोजर की मदद से इन अवैध ढांचों को गिराया। जिला प्रशासन के एक अधिकारी ने बताया, “ये ढांचे जंगल की जमीन पर बने थे। इन्हें नोटिस भी दिया गया था, लेकिन जब निर्माणकर्ताओं ने खुद इन्हें नहीं हटाया, तो मजबूरन हमें कार्रवाई करनी पड़ी।”
हाल ही में अनंगपुर और मेवला क्षेत्र में नए गेट और दीवारों के निर्माण का ज़िक्र किया गया था, जिसके बाद ताजा तोड़फोड़ अभियान चलाया गया।
यह क्षेत्र पंजाब लैंड प्रिजर्वेशन एक्ट (PLPA), 1990 की धारा 4 के अंतर्गत संरक्षित है, जहां किसी भी गैर-वनीकरण गतिविधि की अनुमति नहीं है। अभियान के दौरान टीम को कई नए अवैध निर्माण मिले।
पर्यावरणविद् और वन्यजीव विशेषज्ञ सुनील हर्षणा ने कहा, “यह अभियान सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट सौंपने के उद्देश्य से किया गया है क्योंकि मामला जल्द ही सुनवाई में है। पिछले दो वर्षों में अरावली के संरक्षित क्षेत्रों में अवैध निर्माण में भारी बढ़ोतरी हुई है। गौशालाएं धीरे-धीरे विशाल आश्रमों और मंदिरों का रूप ले रही हैं। पेड़ों की कटाई और कचरे का डंपिंग भी लगातार जारी है। निगरानी की कमी के चलते स्थिति बद से बदतर हो रही है।”
जुलाई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि PLPA की विशेष अधिसूचना के तहत आने वाली सभी जमीनों को वन क्षेत्र माना जाए और वहां पर बने सभी अवैध निर्माणों को हटाया जाए। बावजूद इसके, हरियाणा सरकार ने पिछले छह महीनों में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।
दिसंबर में किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि फरीदाबाद की चार गांवों में 6,793 अवैध निर्माण संरक्षित PLPA भूमि पर खड़े हैं। इनमें सबसे ज्यादा अनंगपुर में 5,948 निर्माण हैं, जबकि बाकी अंखीर, लक्कड़पुर और मेवला महाराजपुर में पाए गए।
हाल ही में यह भी देखा कि आगामी शादी समारोहों के लिए सजाए गए बैंक्वेट हॉल और नई गौशालाएं सुरजकुंड-बढ़कल रोड पर वन क्षेत्र में सिर्फ कुछ मीटर अंदर स्थापित की गई थीं। इस मार्ग पर अंखीर, अनंगपुर और मेवला महाराजपुर जैसे गांव आते हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि ये छोटी गौशालाएं धीरे-धीरे बड़े आश्रमों का रूप ले सकती हैं, जिससे अरावली की जैव विविधता और पारिस्थितिकी को गंभीर नुकसान हो सकता है।