कॉपी और रजिस्टर बनाने की फैक्टरी में काम करने वाले सातरोड़ कलां के नरेश कौशिक आज गाय के गोबर और गोमूत्र से लगभग 20 तरह के उत्पाद बना प्रति महीना दो लाख रुपये कमा रहे हैं। वे बताते हैं कि एक दिन जब वे फैक्टरी से लौट रहे थे तो उन्होंने एक व्यक्ति को एक गाय को गोशाला छोड़ने जाते हुए देखा तो वे बहुत भावुक हुए और उसी दिन से उन्होंने गोरक्षा का बीड़ा उठाया। उनका मानना है कि खाली दूध बेचने से गाय की हिफाजत नहीं की जा सकती। बल्कि गोमूत्र और गोबर को भी बेचना होगा। इस तरह गाय से जितनी कमाई होगी, उसका संरक्षण भी उतना ही होगा। उनके पास लगभग अब 60 गाय हैं।उत्पाद बनाने की शुरूआत 2013 में उन्होंने राजीव दिक्षित को सुनकर की थी। सबसे पहले उन्होंने गोबर से हवन की लकड़ी बनाकर शुरुआत की थी। इस हवन सामग्री के निर्माण से पेड़ की कटाई कम हुई है। हवन में लाखों टन लकड़ी हर साल जल जाती है, लेकिन हमारी बनाई हवन सामग्री के प्रयोग से पेड़ों की कटाई को बचाया जा सकता है। वे बताते है कि जब काम की शुरूआत की तो पैसा था। लेकिन जब धीरे-धीरे इस काम के लिए प्रचार प्रसार करने दूर जाना पड़ता था तो अधिक पैसे लगते थे। जिस कारण घर की आर्थिक स्थिति खराब रही। जिसके बाद उन्होंने एचएयू में दो महीने प्रशिक्षण लिया।
एक महीने में कमा रहे 2 लाख –
नरेश कौशिक के पास अभी 60 पशु है। गाय का मूत्र, गाय का गोबर 100 किलो बेच रहे हैं। पूरे देश में इनके कस्टमर हैं। बंगाल, उड़ीसा में भी उनके उत्पाद जा रहे हैं।ये हैं उत्पाद –
हवन समिधा, हवन साम्रगी, धूप, संभरानी, दीपक, मूर्तियां, ईंट, गमले, शैंपू, हेंडवॉस, गौनायल, हेयरऑयल, फेसक्रीम, फेसपेक, नासिका बर्तन बार, गुगल धूनी, मच्छरांतक, गोअर्क, नहाने का साबून आदि।एचएयू ने दिए 5 लाख रुपये –
एचएयू विश्वविद्यालय से इन्हें 5 लाख रुपये की मदद मिली। जिसकी सहायता से उन्होंने बर्तन बार बनाने की मशीन, मिक्सर आदि खरीदा। पहले जहां पर मशीन न होने के कारण काम में 10 से 12 घंटे लगते थे, वहीं मशीन से काम आधे समय में हो रहा है।