अमजद खान, नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला युसूफजई के जीवन पर फिल्म ‘गुल मकई’ लेकर आए हैं। फिल्म 31 जनवरी को रिलीज हो चुकी है। फिल्म के कलाकारों और मलाला के परिवार ने इस फिल्म के लिए किस तरह काम किया। अमजद ने इस मुलाकात में फिल्म बनाने की चुनौतियों से जुड़ी बातें शेयर की।
अमजद ने बताईं ये बातें
- हिंदुस्तान की सरजमीं पर बैठकर पाकिस्तानी लड़की पर फिल्म बनाना सबसे कठिन टास्क था, क्योंकि जब उन्हें गोली लगी थी। तब मैंने कहानी लिखनी शुरू की थी। उस समय मलाला को नोबल पुरस्कार से नवाजा भी नहीं गया था। मैंने सबसे पहले वहां के पत्रकारों से बात की जो तालिबानियों पर रिपोर्टिंग करते थे। फिर वहां के डिप्लोमेट्स से फोन पर बात करना शुरू किया। फिर आर्मी ऑफिसर से बात हुई, उसके बाद वहां से रियल हालात लिखना शुरू किया। यह सब करने में लगभग दो साल लग गए। इसके बाद जब राइटर चक्रवर्ती के साथ स्क्रिप्ट लिखने बैठा, तब लगा कि कुछ चीजें असंतुलित हैं, जो हमारी समझ में नहीं आ रहीं थीं। तो फिर वहां के स्थानीय लोगों से पूछना शुरू किया। उन लोगों से जो रिपोर्ट मिली, उसमें थोड़ा फर्क था।
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जिसे लीड में किया कास्ट, उसके घर पर पथराव हुआ
स्क्रीनप्ले लिखने के बाद कास्ट तय की। कम्प्यूटर ग्राफिक्स के जरिए एक्टर को गेटअप दिया तो कई फिट बैठे। फिर मुकेश ऋषि, पंकज त्रिपाठी, अभिमन्यु सिंह, आरिफ जकारिया, शारिब हाशमी आदि को जोड़ा। सबसे पहले नेगेटिव कैरेक्टर का चयन किया, क्योंकि वह सबसे ज्यादा पावरफुल है। इसके बाद पॉजिटिव किरदार को चुनना शुरू किया। दिव्या दत्ता को मां और पिता के किरदार में अतुल कुलकर्णी को लिया। मलाला के रोल के लिए बांग्लादेश की फातिमा नाम की लड़की को कास्ट किया। धीरे-धीरे यह बात सब जगह फैल गई। नतीजा यह हुआ कि उसके घर पर पथराव हो गया। इसके बाद रीम शेख को ढूंढ निकाला, वह मलाला के रोल में मैच कर गई।
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पाकिस्तान से आए दिन धमकी भरे मेल आते हैं
मुझे पाकिस्तान से आए दिन ईमेल आते रहते हैं कि जान से मार देंगे, पर यह सब तो होता ही रहता है। मैं यह सोचता हूं कि जब एक पाकिस्तान की छोटी-सी बच्ची वहां के उग्रवादियों के बीच में रहकर उनसे लड़ सकती है, तब हम तो हिंदुस्तान जैसे सुरक्षित देश में हैं फिर तो डर का सवाल ही नहीं उठता। फिल्म के सब्जेक्ट पर ऑब्जेक्शन का डर बिल्कुल नहीं था, क्योंकि मैं तो उनकी हूबहू कहानी दिखा रहा हूं। इसके बाद सेंसर बोर्ड की बात आई, तब इसे एक भी कट नहीं मिला। फिल्म देखते-देखते आपको लगेगा कि आप वॉर जोन में खड़े हैं।
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टालनी पड़ी रिलीज डेट
मुझे लगा कि अभी यह क्रिटिसाइज नहीं होगी। जब हमने सोच लिया कि जनवरी 2018 में ही फिल्म रिलीज हो जाएगी, तब देश में हालात बिगड़ने लगे, इलेक्शन आ गए, पुलवामा अटैक हो गया, बालाकोट पर अटैक किया। पाकिस्तान के डिप्लोमेट्स ने भी मना कर दिया कि यह फिल्म यहां रिलीज नहीं होगी। इलेक्शन के बाद हिंदुस्तान में थोड़ा माहौल ठीक हुआ, तब धारा 370 हट गई। फिर अब सीएए का मामला आ गया। अब वक्त है फिल्म को रिलीज करने का, क्योंकि अब हम रुक नहीं सकते। इस फिल्म का एक शो लंदन में भी रखा, उसमें लगभग 450 सम्मानित लोगों को हमने बुलाया जो कि दुनिया के कोने-कोने से आए थे।
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फिल्म देखकर सब रोने लगे
फिल्म पूरी होने के बाद हमने जनवरी, 2019 में मलाला की फैमिली को भी फिल्म दिखाई। उन्हें यह इतनी पसंद आई कि इसे देखकर घर में सब रोने लगे। उस ड्राइवर ने भी फिल्म देखी जिसके सामने गोली चली थी। हिंदुस्तान की भी मिनिस्ट्री से रामदास आठवले और अमेरिका से लेकर जिनेवा समेत हर देश से जिसे फिल्म देखने के लिए बुलाया उन्होंने स्टैंडिंग ओवेशन दी।
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इंटेलिजेंस से आए दिन फोन आता था
हमें हूबहू मलाला के घर जैसी प्रॉपर्टी चाहिए थी। घर का इंटीरियर भी मैच करना था। आउटडोर लोकेशन भी मैच करनी थी, जहां पर बर्फबारी होती है। तब हम कश्मीर के रिमोट एरिया में गए, मतलब श्रीनगर से 70-80 किलोमीटर और अंदर जाकर सेम लोकेशन चुनकर स्कूल क्रिएट किया। इंटेलिजेंस से भी आए दिन फोन आता था कि आप पाकिस्तान को इतना फोन क्यों कर रहे हैं। आप वहां के लोगों से बात क्यों कर रहे हैं?