भ्रूण लिंग परीक्षण के मामले में हुई एफआईआर को चुनौती देने वाली याचिका पर हाईकोर्ट ने डॉक्टरों को राहत दी है। मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट जस्टिस संजय के. अग्रवाल की सिंगल बेंच ने कहा है कि ऐसे किसी मामले में पुलिस सीधे किसी डॉक्टर के ऊपर एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती। पुलिस इस मामले को लेकर पीएनडीटी एक्ट में संबंधित क्रिमिनल कोर्ट में परिवाद पेश कर सकती है। आदेश में हाईकोर्ट ने डॉक्टर के ऊपर हुई एफआईआर को भी निरस्त करने का आदेश दिया है। महासमुंद जिले के सरायपाली में विकासखंड चिकित्सा अधिकारी अमृतलाल रोहलेदार ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
उनके ऊपर एक नेता ने घर पर सोनोग्राफी सेंटर चलाते हुए भ्रूण के लिंग का परीक्षण करने का आरोप लगाते हुए शिकायत की थी। शिकायत पर एसडीएम ने डॉक्टर को नोटिस जारी किया। जवाब प्रस्तुत करते हुए डॉक्टर ने बताया था कि उनकी पत्नी एक स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं। उनके घर पर स्थित क्लीनिक पंजीकृत है और वे ऐसे किसी भी प्रकार का लिंग परीक्षण नहीं करते। इसके बाद मामला कलेक्टर के पास पहुंचा और कलेक्टर ने तहसीलदार को एफआईआर दर्ज करवाने कहा।
तहसीलदार की शिकायत पर पुलिस ने पीएनडीटी एक्ट की धारा 23(1) के तहत डॉक्टर के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर लिया। डॉक्टर ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की और कहा कि मामले में पीएनडीटी एक्ट के तहत पुलिस सीधे एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती। मामले में सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने डॉक्टर के पक्ष में फैसला सुनाया है। साथ ही प्रशासन को पीएनडीटी एक्ट के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई की छूट दी है।