टकराव टालने को मुख्यमंत्री अपने पास रखते हैं सीआईडी विभाग, देवीलाल ने किए थे अलग-अलग |

हरियाणा में अब तक मुख्यमंत्री यूं ही सीआईडी विभाग को अपने पास नहीं रखते आए, इसके पीछे बड़ा मकसद सत्ता का और केंद्र न बनने देना और टकराव टालना था। गृह मंत्री तो पूर्व सरकारों में भी बनते रहे हैं, लेकिन मुख्यमंत्रियों ने सीआईडी विभाग को अपने से अलग नहीं किया। जिससे मुख्यमंत्री और गृह मंत्री के बीच कोई विवाद नहीं हुआ। हरियाणा की वर्तमान गठबंधन सरकार में वरिष्ठ भाजपा विधायक अनिल विज को गृह मंत्री बनाने के साथ ही सीआईडी विभाग भी दिया गया है। विज सीआईडी की कार्यप्रणाली से खुश नहीं हैं।

उन्होंने सीआईडी को फिसड्डी बताते हुए इसमें सुधार के लिए तीन वरिष्ठ अफसरों की कमेटी तक गठित कर दी है। सीआईडी से गोपनीय रिपोर्ट लेने को भी विज का विवाद हो चुका है। पूर्व सरकारों में मुख्यमंत्री सीआईडी को अपने अधीन इसलिए ही रखते थे, क्योंकि अनेक तरह की गोपनीय रिपोर्ट आनी होती हैं। उन्हें सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। वर्तमान सरकार में सीआईडी विभाग विज के अधीन है, इसलिए टकराव की स्थिति उत्पन्न हुई है। विज अपने ही स्टाइल में काम करते हैं, इसलिए भी सीआईडी को सांमजस्य बिठाने में दिक्कत हो रही है।

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि 20 वर्ष बाद हरियाणा मंत्रिमंडल में गृह विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। 2009 में भूपिंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार में निर्दलीय विधायक गोपाल कांडा गृह राज्य मंत्री बनाए गए थे। वर्ष 2005 में जब भूपिंद्र सिंह हुड्डा पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तोउन्होंने गृह विभाग अपने पास ही रखा था। ओम प्रकाश चौटाला ने फरवरी 2000 में  मुख्यमंत्री बनने पर किसी मंत्री को गृह विभाग नहीं दिया था।

जुलाई, 1999 में जब बंसी लाल सरकार का  तख्ता-पलट कर चौटाला ने अपनी सरकार बनाई थी तो अकरम खान को कुछ महीनों के लिए गृह राज्य मंत्री बनाया था। मई 1996 में बंसी लाल के नेतृत्व में हरियाणा विकास पार्टी (हविपा ) और भाजपा की गठबंधन सरकार बनने पर हविपा के वरिष्ठ नेता मनी राम गोदारा गृह विभाग के कैबिनेट मंत्री बनाए गए थे। वे जुलाई, 1999 तक अपने पद पर रहे, लेकिन बंसी लाल ने सीआईडी विभाग अपने पास ही रखा था। पूर्व मनोहर लाल सरकार में भी गृह व सीआईडी विभाग मुख्यमंत्री के पास ही थे।

53 वर्षों में सीएम ने सीआईडी को अलग नहीं किया

एडवोकेट हेमंत ने बताया कि हरियाणा के 53 वर्षों के राजनीतिक इतिहास में मुख्यमंत्रियों ने गृह विभाग बेशक अपने मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सहयोगी को दिया, मगर सीआईडी विभाग को कभी अपने से अलग नहीं किया।

पूर्व मुख्यमंत्री देवी लाल ने जनवरी, 1978 में जब भाजपा के वरिष्ठ नेता मंगलसेन को गृह मंत्री बनाया था तो अधिसूचना जारी कर स्पष्ट किया था कि सीआईडी उनके अधीन नहीं होगा। इसके बाद चौटाला ने दिसंबर,1989 में संपत सिंह को भी बगैर सीआईडी का गृहमंत्री बनाया था। मई, 1990 में मुख्यमंत्री बनारसी दास गुप्ता ने भी गृहमंत्री संपत सिंह को सीआईडी का चार्ज नहीं दिया।

सीआईडी को अलग विभाग के तौर पर नहीं दिखाया

हरियाणा सरकार के मौजूदा कार्य संचालन (आवंटन) नियमों, 1974 में सीआईडी को अलग विभाग के तौर पर नहीं दिखाया गया है। गृह विभाग के कार्यों में उल्लेख है कि सीआईडी के महत्वपूर्ण केस मुख्य सचिव के मार्फत भेजे जाएंगे।

प्रशासनिक स्तर पर हरियाणा सरकार के गृह विभाग में गृह (पुलिस) के अलावा जेल विभाग, सीआईडी विभाग और न्याय प्रशासन विभाग भी आते हैं। जेल विभाग कैबिनेट मंत्री रणजीत सिंह चौटाला के पास है, जबकि न्याय-प्रशासन विभाग मुख्यमंत्री के पास ही है।

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