मुक्त हुआ बचपन / 15 घंटे लेते थे काम, छोटे से कमरे में रखा जाता था 20-25 बच्चों को |

सूरत. सूरत शहर में मानव तस्करी को लेकर रविवार सुबह 4 बजे अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई की गई। राजस्थान पुलिस, सूरत पुलिस, राजस्थान बाल आयोग और एक एनजीओ की संयुक्त कार्रवाई के बाद पूणागाम इलाके के सीता नगर से करीब 134 बच्चों को छुड़ाया गया है। ये सभी बच्चे 10 से 15 साल के हैं। इनमें करीब 125 बच्चे राजस्थान से हैं, जबकि कुछ बच्चे बिहार, झारखंड और यूपी से हैं। इन बच्चों को फिलहाल राजस्थान ले जाया गया है।

बच्चे साड़ी फोल्डिंग का काम करते थे

मानव तस्करी को लेकर भास्कर स्टिंग के बाद ये कार्रवाई की गई है। सभी बच्चे यहां साड़ी फोल्डिंग का काम करते हैं। इनमें से कई बच्चे अनाथ भी हैं। कइयों के माता-पिता गरीबी से तंग आकर दलाल के चंगुल में फंस गए थे। जहां से बच्चों को छुड़ाया गया, उन कमरों को देखकर टीम भी हैरान रह गई। दरअसल एक कमरे में 20 से 25 बच्चों को रखा जाता था। कमरों की लंबाई-चौड़ाई का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इन कमरों में केवल दो बेड ही लगाए जा सकते हैं। हालांकि इस मामले में अभी तक कोई मामला दर्ज नहीं हुआ है और न ही किसी की गिरफ्तारी हुई है। ‌दरअसल, राजस्थान से आई टीम ने बताया कि उन्हें पुख्ता जानकारी मिली थी कि राजस्थान से बच्चों की तस्करी कर सूरत मजदूरी के लिए लाया जाता है।

कमरे तक सिमटी जिंदगी

जिन बच्चों को छुड़ाया गया है, उसमें से 129 बच्चे राजस्थान के पाली, नागौर, उदयपुर और राजसमंद जिले के हैं। इन्हें गोगुन्दा, सायरा, जाडोल, फलासिया, ओगडा, कोटड़ा, कुम्बल गढ़, माड़वा, कसेड़ा सहित आसपास के अन्य गावाें से लाया गया था। अधिकांश गांव आदिवासी बहुल इलाके हैं।

पहनने को न ऊनी कपड़े न ओढ़ने को कंबल

बच्चों को जिन कमरों में रखा गया था वहां कोई सुविधा नहीं थी। इस सर्द मौसम न तो तन ढकने को पर्याप्त कपड़े थे और न ही साेने के लिए कोई इंतजाम। बिना कंबल के वे पूरी रात बिताते थे। ओढ़ने के लिए वही साड़ी थी, जिसे फोल्डिंग करते थे और बिछाने के लिए भी साड़ी का ही इस्तेमाल करते थे। उसी छोटे से कमरे में रहना, सोना-खाना और शौचालय। किसी को शक न हो इसलिए बाहर निकलने के लिए सख्त मनाही थी।

3-5 हजार रुपए मिलते थे

बच्चों को सुबह 8 बजे ही काम पर लगा दिया जाता था और रात 11 बजे तक काम लिया जाता था। उन्हें 3 से 5 हजार रुपए तक चुकाए जाते थे। लेकिन ये पैसे उन्हें नहीं बल्कि उनके माता-पिता को भेज दिया जाता था, ताकि बच्चे भाग भी नहीं सकें। बच्चों को हर महीने कितने पैसे दिए जाएं, यह बच्चों के काम करने की क्षमता, उसके उम्र से तय की जाती थी।

पूरा खेल दलालों का

मानव तस्करी का पूरा खेल दलालों के जरिए होता है। जिसको भी बच्चों की जरूरत होती थी, वे राजस्थान के दलालों से संपर्क करते थे। दलाल इनसे एडवांस में करीब 20 हजार रुपए ले लेते थे। तब दलाल राजस्थान में मौजूद दूसरे दलालों से संपर्क करता था।

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