देश में दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को इस संदर्भ में स्वत: संज्ञान लिया और राज्यों से कानून के अमल पर स्थिति रिपोर्ट मांगी। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की पीठ ने 2012 के निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले का जिक्र करते हुए कहा कि इसने राष्ट्र के मानस को झकझोर दिया था।
कोर्ट ने कहा कि एनसीआरबी के अनुसार, 2017 में देशभर में 32,559 केस दर्ज किए गए थे। इस तरह के मामलों में विलंब ने हाल के समय में आंदोलन और लोगों के मन में अशांति को जन्म दिया। ये देश और समाज के लिए ठीक नहीं है। पीठ ने इस तरह के मामलों में जांच, साक्ष्य जुटाना, फारेंसिक और मेडिकल साक्ष्य, पीड़ित के बयान दर्ज करना, पीड़ित व गवाहों को सुरक्षा और मुकदमे की सुनवाई की समय सीमा सहित अनेक पहलुओं पर सभी राज्यों और उच्च न्यायालयों से सात फरवरी, 2020 तक समग्र स्थिति रिपोर्ट मांगी है।
अगली सुनवाई फरवरी में
पीठ ने न्यायालय की मदद के लिए इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा को न्यायमित्र नियुक्त किया है। वहीं सॉलिसिटर जनरल इस मामले में लूथरा को पूरा सहयोग करेंगे। मामले की सात फरवरी 2020 को सुनवाई होगी।
जस्टिस बोबडे की पीठ ये सवाल भी पूछे
* कोर्ट ने पूछा कि क्या टू फिंगर टेस्ट अब भी हो रहा है। ये टेस्ट समाप्त करने के लिए कहा गया था। क्योंकि यह महिला के सम्मान के खिलाफ है।
* क्या मेडिकल विशेषज्ञों ने पीड़ित के पूर्व यौन व्यवहार के बारे में राय देनी बंद कर दी है।
* क्या सभी सरकारी जिला अस्पतालों में महिला चिकित्सक उपलब्ध रहती हैं।
* क्या फॉरेंसिक डीएनए लेने के लिए कोई एसओपी है। क्या पुलिस दो माह में जांच पूरी कर रिपोर्ट दे रही है। क्या हर थाने में पर्याप्त महिला पुलिस मौजूद है जो दुष्कर्म के मामलों की जांच करे।
* क्या पुलिस पीड़ित के धारा 164 के तहत बयान दर्ज जल्द से जल्द करवा रही है। क्या कोर्ट में वीडियोग्राफी की पर्याप्त व्यवस्था है।
* क्या दुष्कर्म के ट्रायल महिला जज द्वारा किए जा रहे हैं। क्या ये व्यवस्था है कि पीड़ित का अभियुक्त से सामना न हो।
* क्या गवाहों और पीड़ितों के लिए कोर्ट में विशेष प्रतीक्षाकक्ष बनाए गए हैं। क्या इन अदालतों में अनुवादक मौजूद रहते हैं।
* क्या ये ट्रायल दो माह में पूरे हो रहे हैं। क्या पर्याप्त मात्रा में दुष्कर्म के ट्रायल के लिए विशेष कोर्ट बनाए गए हैं।
* क्या अभियोजन गवाहों की मौजूदगी सुनिश्चित कर रहा है।
* क्या पीड़ितों को धारा 357 ए के तहत मुआवजा दिया जा रहा है।
* क्या प्रखंड स्तर पर एक फोरेंसिक लैब बनाई गई है।
* क्या वकीलों को ऐसा कोई परामर्श दिया है कि वे ट्रायल को समाप्त करने में मदद करें।