पटना. जदयू आने वाले दिनों में एनआरसी की मुखालफत कर सकती है। जदयू के रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) ट्विटर पर लगातार एनआरसी पर हमला कर रहे हैं। पीके वहले सीएए पर भी निशाना साध रहे थे, लेकिन शनिवार को नीतीश से हुई उनकी मुलाकात के बाद सीएए पर तो उनके तेवर नरम हो गए, लेकिन अगले ही दिन उन्होंने एनआरसी पर हमला करना शुरू कर दिया। पीके के बयानों पर पार्टी की राय भी स्पष्ट नहीं है।
रविवार को पीके ने ट्वीट किया था- देशभर में एनआरसी का विचार नागरिकता की नोटबंद करने जैसा है। इस ट्वीट के जरिए प्रशांत ने यह जरूर जता दिया कि वे सीएए पर भले आगे कुछ न बोलें लेकिन एनआरसी पर चुप नहीं बैठेंगे। जदयू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी भी एनआरसी लागू नहीं करने की वकालत कर चुके हैं। उनका कहना है कि केंद्र को इस पर और अधिक विचार करने की जरूरत है। एनआरसी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशन में सिर्फ असम के लिए बनी थी।
पीके के लिए अपनों को भूले नीतीश’
राजनीतिक विश्लेषक शंभूनाथ सिन्हा बताते हैं कि सियासी गलियारों में इस बात पर चर्चा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पीके के लिए अपनों को भूल गए। जब सीएए को लेकर प्रशांत किशोर पार्टी नेतृत्व पर सवाल खड़े कर रहे थे, तब नीतीश के करीबी लगातार पीके पर हमले कर रहे थे। नीतीश के करीबी आरसीपी सिंह ने तो यहां तक कह दिया था कि राष्ट्रीय नेतृत्व का फैसला स्वीकार नहीं है तो अनुकंपा वाले नेता अपना रास्ता नाप लें। कार्रवाई उन पर होती जो पार्टी में हो। नीतीश के मंत्री नीरज भी पीके को हर मुद्दे पर घेरने में जुटे थे। ऐसा लग रहा था कि पार्टी प्रशांत किशोर पर बड़ी कार्रवाई कर सकती है। नीतीश से मिलने के बाद प्रशांत किशोर ने दावा कि मैंने तीन बार इस्तीफे की पेशकश की, लेकिन सीएम ने ठुकरा दिया।
ये है सीएए और एनआरसी पर पीके के विरोध का कारण
राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि 2014 के लोकसभा में जीत के बाद भाजपा की प्रशांत किशोर से खटपट हो गई। जब भाजपा ने पीके को ज्यादा तवज्जो नहीं दी, तब वे विरोध में जाकर भाजपा को हराने के लिए मुहिम में जुट गए। 2015 में पीके ने बिहार विधानसभा चुनाव में लालू-नीतीश के लिए काम किया और महागठबंधन को बंपर जीत मिली। हालांकि, यूपी के चुनाव में पीके फेल हो गए। पंजाब विधानसभा चुनाव में पीके ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए काम किया। इसके बाद आंध्रप्रदेश में वाईएसआर के लिए काम कर शानदार जीत हासिल करने में बड़ी भूमिका अदा की। शंभूनाथ सिन्हा ने कहा कि सीएए और एनआरसी पर पीके की मजबूरी समझी जा सकती है। पीके इस वक्त ममता बनर्जी के लिए काम कर रहे हैं। ऐसे में उनकी हालत असहज हो रही थी क्योंकि जदयू ने संसद में सीएए का समर्थन कर दिया। यही वजह है कि जदयू में रहते हुए भी पीके ने पार्टी के स्टैंड पर सवाल खड़े कर दिए।