निर्भया गैंगरेप मामले के चार मुजरिमों में से एक अक्षय कुमार सिंह द्वारा मौत की सजा के फैसले पर पुनर्विचार के लिये दायर की गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एस ए बोबड़े ने खुद को अलग कर लिया है। इस मुजरिम ने इस मामले में उसके मृत्युदंड को बरकरार रखने के शीर्ष अदालत के 2017 के फैसले की समीक्षा करने की मांग की है। प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ अक्षय कुमार सिंह की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करेगी।
-सुप्रीम कोर्ट में दोषी अक्षय की याचिका पर सुनवाई से पहले निर्भया की मां आशा देवी ने कहा कि हमें भरोसा है कि हमें न्याय मिलेगा, क्योंकि हमारे पास कोई अन्य विकल्प नहीं है। अगर कुलदीप सिंह सेंगर (उन्नाव रेप केस का दोषी) और निर्भया के चारों दोषियों को फांसी की सजा मिलती है तो समाज में इससे कठोर संदेश जाएगा।
अक्षय कुमार सिंह ने तर्क दिया था कि मौत की सजा पर अमल अपराध को नहीं बल्कि सिर्फ अपराधी को मारता है। इतना ही नहीं, दोषी ने अपनी याचिका में फांसी से बचने के लिए पुराण-उपनिषद का भी जिक्र किया है और दिल्ली में प्रदूषण का भी। उसके वकील ने यह दलील देते हुए दया की मांग की है कि दिल्ली में बढ़ते वायु एवं जल प्रदूषण के चलते वैसे ही आयु छोटी हो रही है।
दिसंबर, 2012 में हुये सनसनीखेज निर्भया कांड में उच्चतम न्यायालय ने 2017 में चारों मुजरिमों की मौत की सजा के दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को सही ठहराया था। इससे पहले, उच्च न्यायालय ने चारों को मौत की सजा के निचली अदालत के फैसले की पुष्टि कर दी थी। दक्षिण दिल्ली में 16-17 दिसंबर, 2012 की रात चलती बस में छह व्यक्तियों ने 23 वर्षीय छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद उसे बुरी तरह जख्मी करके सड़क पर फेंक दिया था। निर्भया का बाद में 29 दिसंबर, 2012 को सिंगापुर में माउन्ट एलिजाबेथ अस्पताल में निधन हो गया था।
इस प्रकरण में 33 वर्षीय अक्षय के अलावा तीन अन्य दोषियों की पुनर्विचार याचिका न्यायालय पहले ही खारिज कर चुका है। अक्षय ने अपने वकील ए पी सिंह के माध्यम से दायर पुनर्विचार याचिका में मौत की सजा के संभावित अमल के खिलाफ दलीलें दी हैं।
इस याचिका में कहा गया है, ‘शासन को सिर्फ यह साबित करने के लिये लोगों की मौत की सजा पर अमल नहीं करना चाहिए कि वह आतंक या महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर हमला कर रहा है। उसे बदलाव के बारे में सुनियोजित तरीके से सुधार के लिये काम करना चाहिए। फांसी की सजा पर अमल सिर्फ अपराधी को मारता है, अपराध को नहीं।’
शीर्ष अदालत ने पिछले साल नौ जुलाई को इस बर्बरतापूर्ण अपराध के तीन दोषियों 30 वर्षीय मुकेश, 23 वर्षीय पवन गुप्ता और 24 वर्षीय विनय शर्मा की पुनर्विचार याचिकायें खारिज कर दी थीं। न्यायालय ने कहा था कि इनमें 2017 के फैसले पर पुनर्विचार का कोई आधार नहीं है। इस समय दिल्ली की एक जेल में बंद अक्षय ने अपनी याचिका में कहा है कि मौत की सजा ‘बेरहमी से हत्या है और यह दोषियों को सुधरने का अवसर प्रदान नहीं करती है। याचिका में मौत की सजा खत्म करने की कारणों का जिक्र करते हुये कहा है कि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे पता चलता हो कि इस दंड का भय पैदा करने का कोई महत्व हो।’