टाइगर रिजर्व में कोर एरिया से लगा गांव बिंदावल… भास्कर टीम शाम 4.30 बजे भास्कर टीम पहुंची तो बिजली का नामोनिशान नहीं था। पूरे गांव में सोलर एनर्जी के खंभे और पैनल दिखे, लेकिन अंधेरा हो गया पर बिजली नहीं जली। गांववालों ने बताया कि 3 दिन पहले लाइट दो-तीन घंटे जली, तब से बंद है। यह हाल अचानकमार टाइगर प्रोजेक्ट में कोर एरिया और बाहर बसे उन 34 गांवों का है, जहां बिजली के नाम पर सिर्फ सोलर लाइट है।
यही छत्तीसगढ़ में सोलर एनर्जी का सबसे बड़ा और 19 साल पुराना प्रोजेक्ट एरिया भी है। टीम ने इनमें से 4 गांवों का शाम 4 बजे से रात 10 बजे तक दौरा किया। रात 9 बजे के बाद सारे गांव घने अंधेरे में डूबे मिले। लोगों ने बताया कि शाम 6 बजे के बाद बिजली जलती है, लेकिन कहीं 8 बजे से बंद होने लगती है, तो 9 बजे तक पूरी बंद। केवल मोबाइल चार्ज होता है, वर्ना बिजली के सामान्य उपकरण जैसे टेलीविजन-फ्रिज वगैरह काम ही नहीं करते। भास्कर टीम ने 11 दिसंबर को अचानकमार टाइगर रिजर्व के कोर एरिया से लगे गांवों का जायजा लिया।
यहां के 34 से ज्यादा गांव हैं, जो 59 सोलर पैनलों से मिलने वाली बिजली के भरोसे ही हैं। घने जंगलों में जैसे ही पहला गांव अाया, वहां सोलर पैनल और खंभे पहले दिखे। अगर अाप बिलासपुर से अचानकमार की ओर जाएंगे तो चर्चित गांव केंवची तक पूरे टाइगर रिजर्व तक के गांवों का यही नजारा। शाम साढ़े 4 बजे टीम बिंदावल पहुंची तो लोगों ने बताया कि 3 दिन से लाइटें जली ही नहीं हैं। रात में घुप अंधेरा है। दुकानदार रामअवतार जायसवाल के मुताबिक न घरों में लाइट है, न गलियों में। घर में फ्रीज है, लेकिन पिछले साल गर्मी में एक बार ही चला। यहीं के गंगाराम साकत के अनुसार अंधेरा है, इसलिए बच्चों की पढ़ाई ठप है। यहीं की रामबती और रामप्रसाद ठंड से बचने के लिए घर में लकड़ी जलाए बैठे थे। 4 कमरे का घर है, दो बड़े लड़के भी यहीं हैं। पूरे कमरों के लिए केवल एक ही एलईडी बल्ब है, जिसमें सोलर कनेक्शन है। रामबती ने बताया कि पता नहीं बल्ब कब जलेगा, महीने में चार-पांच बार ऐसा हो रहा है।
यहां से टीम करीब 4 किमी दूर छपरवा पहुंची। वहां करीब 40 मकान हैं। यहीं वन नाके में पदस्थ भास्कर नाम के कर्मचारी ने बताया कि वे लोग रोज 6 बजे लाइट चालू करते हैं पर 9 बजे बंद कर ही देते हैं। सोलर लाइट ऑपरेटर दिनेश साकत बताते हैं कि 40 घरों के हिसाब से 5 किलोवाट का पैनल है। हर घर में 2 बल्ब जल सकते हैं, पर कुछ ने ज्यादा भी लगाए हैं। सोलर एनर्जी बर्बाद न हो, इसलिए रात 9 बजे बिजली बंद करते हैं। इससे अागे छपरवा बस्ती के रामप्रताप बैगा ने बताया कि उसके घर में ही रात में 2-3 घंटे ही बिजली मिल रही है। कभी-कभी पहले भी बंद हो जाती है। लेकिन गांव के क्लस्टर इंचार्ज विजय ने दावा किया कि सारा सिस्टम सही है। 3 घंटे लाइट देते हैं, लेकिन दिक्कत यही है कि अाबादी के हिसाब से जरूरत पूरी नहीं हो पा रही है।
अचानकमार के बिंंदावल गांव के सेठपारा में लगे 6 किलोवाट का सोलर पैनल तीन दिन से बंद मिला, अब लोग उसके आसपास कपड़े सुखा रहे हैं। इनसेट-बिंदावल गांव की रामबती ने बताया कि घर में एक बल्ब लगा है, वह भी तीन दिन पहले जला था।
कूलर चलाते ही गांव की लाइट बंद
अचानकमार गांव में भी करीब 100 घर हैं। यह रोड पर है और टाइगर रिजर्व का केंद्रबिंदु है। यहां लोगों ने जरूर बताया कि बिजली रात में 4-5 घंटे मिल रही है। यहां के सोलर लाइट ऑपरेटर 60 साल के खेलनराम सोनवानी बताते हैं कि 100 घर हैं, उनके लिए 15 किलोवाट के 5 सोलर पैनल लगे हैं। किसी दिन रात में देर तक बिजली दे दी तो अगले तीन दिन तक पैनल चार्ज नहीं होता, यानी अंधेरा। पिछली गर्मी में शादी की वजह से गांव के किसी परिवार ने कूलर लगाए थे। कूलर चला तो कुछ देर में पूरे गांव की बिजली चली गई। इसलिए अब कोई नहीं चलाता। हालांकि लोगों ने यह दावा भी किया कि थोड़े दिन पहले ही घरों की लाइटें चेंज हुई हैं। वर्ना तो सब ठप था।
जरूरत बढ़ी, इसलिए दिक्कतें : क्रेडा अफसरों का दावा है कि सोलर प्रोजेक्ट का रिस्पांस व रिजल्ट अच्छा है। क्रेडा के साथ अचानकमार टाइगर रिजर्व के गांवों में कई कंपनियां सोलर पैनल लगाए हैं। मानीटरिंग क्रेडा ही करता है। दरअसल वहां के गांवों की अाबादी और जरूरत बढ़ी है। इसीलिए लगातार बिजली नहीं दे पा रहे हैं। सोलर पैनल से 8 घंटे बिजली दे सकते हैं, लेकिन लोड बढ़ने के कारण ऐसी कटौती जरूरी हो रही है। इसके लिए केंद्र को लगातार सूचित भी किया जा रहा है।
सही है, कुछ घंटे दे पा रहे है
अचानकमार के गांवों में कुछ घंटे बिजली दे पाने की बात सही है। लोगों को दिन न सही, रातभर बिजली मिले, इसके लिए केंद्र सरकार से अाग्रह कर रहे हैं कि क्षमता बढ़ाई जाए। कटौती बिजली की खपत को एडजस्ट करने के लिए ही कर रहे हैं। क्रेडा की तरफ से वहां सोलर पंप, हेल्थ सेंटर, स्कूल व ह़ॉस्टल में भी बिजली दे रहे हैं।