250 करोड़ से अधिक राशि के बहुचर्चित छात्रवृत्ति घोटाले में बड़ा खुलासा हुआ है। शिक्षा विभाग ने साल 2013-14 से 2016-17 तक मात्र छह निजी संस्थानों को 127 करोड़ की छात्रवृत्ति राशि जारी की। सरकारी अफसरों की मिलीभगत से 266 निजी संस्थानों को कुल छात्रवृत्ति राशि का 80 फीसदी बजट दे दिया गया।
चार सालों में सबसे अधिक आईटीएफटी चंडीगढ़ को 39 करोड़ और दूसरे नंबर पर हिमालयन ग्रुप ऑफ प्रोफेशनल इंस्टीट्यूट कालाअंब को 35 करोड़ जारी किए गए। इसके अलावा विद्या ज्योति ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन को 15 करोड़, केसी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन पंडोगा को 13 करोड़, केसी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन नवांशहर को 12 करोड़ और सुखविंद्र ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन दूनेरा को 10 करोड़ की छात्रवृत्ति राशि जारी की गई।
2506 सरकारी और निजी संस्थानों को मात्र 20 फीसदी छात्रवृत्ति बजट ही दिया गया। निजी संस्थानों पर दिखाई गई इस विशेष मेहरबानी की जांच में जुटी सीबीआई ने अधिक बजट प्राप्त करने वाले 22 निजी शिक्षण संस्थानों की पड़ताल पूरी कर ली है। अब जल्द इनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल होगी।
साल 2013-14 से 2016-17 तक उच्च शिक्षा निदेशालय अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी वर्ग के हिमाचली विद्यार्थियों को शिक्षा देने वाले संस्थानों को पहले आओ पहले पाओ के आधार पर बजट जारी करता रहा है। चार सालों के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो छह संस्थानों को 10 करोड़ से 39 करोड़, सात निजी संस्थानों को तीन करोड़ से सात करोड़ और नौ संस्थानों को एक से ढाई करोड़ की राशि जारी हुई।
करोड़ों की छात्रवृत्ति पाने वाले इन निजी संस्थानों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के आवेदनों की इन चार साल के दौरान एक बार भी जांच नहीं की गई। शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने मौके पर जाकर दस्तावेज जांचने की जहमत तक नहीं उठाई। शिमला में बैठे अफसरों की मिलीभगत से सारा खेल चलता रहा।