दिल्ली स्थित एम्स ट्रॉमा सेंटर (AIIMS Trauma Centre) में हेलिपैड (Helipad) बनाने का रास्ता साफ हो गया है। इस सुविधा के मिलने से यह देश का पहला सरकारी अस्पताल हो जाएगा, जहां दुर्घटना और गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीजों को सीधे एम्स पहुंचाया जा सकेगा। अगले साल की शुरुआत तक ट्रॉमा सेंटर की छत पर हेलिपैड को चालू करने की योजना है।
इसकी मंजूरी के लिए एक माह में नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए), विमानन नियामक को प्रस्ताव भेजा जाएगा। एम्स के मीडिया एंड प्रोटोकॉल डिवीजन की चेयरमैन डॉ. आरती विज ने कहा कि अस्पताल डीजीसीए की मंजूरी के लिए काम कर रहा है। हेलिपैड के चालू होने के बाद हाईवे पर गंभीर दुर्घटना के शिकार लोगों को सीधे एयरलिफ्ट कर एम्स लाया जा सकेगा। इसकी पूरी संरचना डीजीसीए के मानकों के अनुरूप तैयार की गई है।
रोजाना 200 मामले : एम्स ट्रॉमा सेंटर में रोज लगभग 200 दुर्घटना और चोट के मामले आते हैं। इनमें से 10 फीसदी को तुरंत अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत होती है। वर्तमान में पांच से छह मरीज पूरे वर्ष में एयरलिफ्ट किए जाते हैं और उन्हें पहले दिल्ली एयरपोर्ट लाया जाता है। वहां से एंबुलेंस से अस्पताल लाया जाता है। वहीं, निजी अस्पताल अपोलो और मेदांता अक्सर गंभीर मरीजों को एयरलिफ्ट करते हैं। इस पर एक लाख रुपये प्रति उड़ान खर्च आता है। एम्स के एक डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि साइट नवनिर्मित विश्राम सदन में स्थानांतरित कर दी गई थी, जिसमें लिफ्ट भी है जो लैंडिंग के बाद मरीजों को अस्पताल ले जाने के लिए आवश्यक है। एम्स के पूर्व निदेशक डॉ. एमसी मिश्रा का कहना है कि गोल्डन आवर के भीतर मरीजों को इलाज मिल सके, इसके लिए एयर एंबुलेंस सेवा जरूरी है। यह गोल्डन आवर दुर्घटना के दो घंटे के भीतर तक माना जाता है।
वर्ष 2009 में प्रक्रिया शुरू हुई थी
हेलिपैड को चालू करने की प्रक्रिया 2009 में शुरू हुई थी, लेकिन इस दौरान कई प्रशासनिक बाधाएं थीं। वहीं, वर्ष 2015 में एलिवेटेड हेलिपैड के लिए साइट नौ मंजिला विश्राम सदन में बनाई गई थी। डीजीसीए की निरीक्षण रिपोर्ट के बाद कहा गया कि हेलिपैड को सबसे ऊंची इमारत के शीर्ष पर होना चाहिए।