दिल्ली-NCR में जानलेवा बना पराली का धुआं, सांस की बीमारी से रोजाना 27 मौतें

नई दिल्ली । दिल्ली में मौजूदा प्रदूषण के लिए आंतरिक स्नोत नहीं, बल्कि पराली का धुआं ही जिम्मेदार है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़े भी अब इसकी तस्दीक कर रहे हैं। नासा की सेटेलाइट इमेज भी बताती है कि हालात 10 अक्टूबर से ही बिगड़ने शुरू हुए थे, जब पंजाब एवं हरियाणा में पराली जलाने के मामले सामने आने लगे। इस कारण प्रदूषण प्रलयकारी मोड़ की तरफ बढ़ने लगा।

सीपीसीबी के एक अगस्त से सात नवंबर तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि अगस्त और सितंबर में एक भी दिन दिल्ली की हवा खराब श्रेणी में नहीं पहुंची। इसी तरह अक्टूबर में भी नौ तारीख तक हवा संतोषजनक या सामान्य श्रेणी में चल रही थी, लेकिन पंजाब-हरियाणा में पराली जलना शुरू होते ही 10 तारीख से यह खराब श्रेणी में जा पहुंची और फिर बहुत खराब से गंभीर श्रेणी में जाती रही। वहीं, दिल्ली में सांस की बीमारी के चलते रोजाना 27 लोगों की मौत हो रही है।

गौरतलब है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी), पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) और सुप्रीम कोर्ट की सख्ती व आदेश दोनों ही हवा-हवाई साबित हो रहे हैं। स्थिति का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि दिल्ली में प्रदूषण में पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने से निकले धुएं की हिस्सेदारी इस बार 46 फीसद तक पहुंच चुकी है। पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रहे गैर सरकारी संगठन टेरी (द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट) ने भी दावा किया है कि मौजूदा समय में दिल्ली को प्रदूषित करने वाली सबसे बड़ी वजह पराली का धुआं ही है। टेरी के अनुसार पिछले 15-20 दिनों से दिल्ली के जो हालात हैं उसमें मुख्य भूमिका पड़ोसी राज्यों में जल रही पराली की ही है।

सांस की बीमारी से 27 लोगों की रोजाना मौत

राजधानी दिल्ली में सांस की बीमारियों से प्रतिदिन 27 लोगों की मौत हो रही है। दिल्ली में स्वास्थ्य की स्थिति पर प्रजा फाउंडेशन द्वारा जारी वार्षिक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। सांस की बीमारियों और उसके कारण होने वाली मौत का बड़ा कारण प्रदूषण बताया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017 में श्वसन तंत्र से संबंधित कैंसर से 551 व सांस की अन्य बीमारियों से पीड़ित 9321 मरीजों की मौत हुई थी। फाउंडेशन ने यह रिपोर्ट तैयार करने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से प्रदूषण से संबंधित चार साल के आंकड़े जुटाए थे। जिसमें कहा गया है कि चार साल में दिल्ली में हवा की गुणवत्ता खराब रही। रिपोर्ट में कहा गया है कि डेंगू की रोकथाम में कामयाबी मिली है लेकिन वर्ष 2018-19 में डायरिया से पांच लाख 14 हजार 52 लाख लोग व टाइफाइड से 51,266 लोग पीड़ित हुए। इसका कारण पेयजल दूषित होना बताया गया है। वर्ष 2018 में लोगों ने दूषित जल की 36,426 शिकायतें कीं।

यहां केवल छह फीसद लोगों के पास स्वास्थ्य बीमा है। गत वित्त वर्ष में पार्षदों ने स्वास्थ्य से जुड़े 1252 मामले व विधायकों ने 264 मामले उठाए। नगर निगम की डिस्पेंसरियों में डॉक्टरों की 21 फीसद व दिल्ली सरकार की डिस्पेंसरियों में 34 फीसद कमी है।

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