अंग-बंग व मिथिलांचल की मिश्रित संस्कृति वाले कटिहार जिले में वसंत पंचमी पर दशहरे जैसी धूम रहती है। दशहरे की तर्ज पर ही यहां सरस्वती पूजा का आयोजन किया जाता है। चार दिनों तक मेले जैसा नजारा रहता है। सरस्वती पूजा पर यहां पांच से लेकर 25 लाख तक की लागत से पंडाल का निर्माण कराया जाता है। जिले में औसतन 350 से ज्यादा पंडालों में मां सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है।
कालीदास पहुंचे थे नील सरस्वती मंदिर
बंगाल की सीमा से सटे होने के कारण यहां पूरे आयोजन पर मिश्रित संस्कृति की झलक दिखती है। पूजा का आयोजन वैदिक पद्धति से होता है। बंगाल के ढाक की थाप और परिधानों से त्योहार का रंग और गहराता है। लोगों की आस्था के कारण बारसोई का नील सरस्वती मंदिर भी है। मान्यता है कि यहां पहुंचकर कालीदास ने मां की पूजा-अर्चना की थी। कई दूसरी जगहों पर भी यहां मां सरस्वती के मंदिर हैं।
कई जगहों पर लगता है मेला
वसंत पंचमी को लेकर यहां बड़ी तैयारी की जाती है। आयोजन में अंग-बंग और मिथिलांचल की अलग-अलग संस्कृतियों का अनूठा रंग इसकी विशेषता को बढ़ाता है। इसके साथ ही ढाक की थाप पर महाआरती और विविध आयोजनों के कारण लोगों की भीड़ जुटती है। इस दौरान कई जगहों पर मेले का भी आयोजन किया जाता है।
एक माह पहले से ही बनते हैं पंडाल
सरस्वती पूजा को लेकर यहां एक माह पहले से ही तैयारियों शुरू हो जाती हैं। बंगाल के कारीगरों द्वारा भव्य पंडाल का निर्माण कराया जाता है। जबकि कई जगहों पर प्रतिमा निर्माण के लिए यहां बंगाल से कारीगर पहुंचते हैं। रायगंज, मालदा, कालियागंज आदि जगहों से भी प्रतिमा मंगाई जाती है। दो हजार से लेकर एक लाख तक की प्रतिमा पंडालों में स्थापित होती है। बड़े आयोजन के कारण सरस्वती पूजा भी यहां दशहरे की तर्ज पर मनाया जाता है। विनोदपुर, दुर्गास्थान, ओटीपाड़ा, ड्राइवर टोला समेत अन्य जगहों पर भव्य पंडाल का निर्माण होता है।